ऐ मित्र !
विस्मृत करूं कैसे उन मधुर क्षणों को,छितरा दूं कैसे उन रजतमयी कणों को।जिनमें आह्लादित हैं तेरी स्मिताएं,
आलम्ब थी धूप मे बस तेरी अलकाएं।
पाषाण जीवन का नूतन मृदुलता थी,
बिन तेरे इसमे बस,
विकलता ही विकलता थी।
तूही मधुरता, तू ही विमलता,
मेरे लिए एक तू ही सफलता।
बिन तेरे कल्पित नही मेरा भवकुंज,
बिन तेरे सानिध्य, वीरान है तरुकुंज।।
-क्रान्ति बाजपेई
हरदोई
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