- मख़दूम मोहिउद्दीन
इक चमेली के मंडवे तले
मयकदे से ज़रा दूर उस मोड़ पर
दो बदन प्यार की आग में जल गए
प्यार उनकी चिता ।।
दो बदन प्यार की आग में जल गए ।।
ओस में भीगते, चाँदनी में नहाते हुए
एक पल के लिए रुक गई ।
दो बदन प्यार की आग में जल गए ।।
हमने देखा उन्हें
दिन में और रात में
नूरो-ज़ुल्मात में
मस्जिदों के मीनारों ने देखा उन्हें
मन्दिरों के किवाड़ों ने देखा उन्हें
मयकदे की दरारों ने देखा उन्हें ।।
दो बदन प्यार की आग में जल गए ।
कुछ इलाज व मदावा-ए-उल्फ़त भी है।
इक चम्बेली के मंडवे तले
मयकदे से ज़रा दूर उस मोड़ पर
दो बदन प्यार की आग में जल गए ।
शब्दार्थ:
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