Sunday 27 January 2013

इक चमेली के मंडवे तले

          - मख़दूम मोहिउद्दीन


इक चमेली के मंडवे तले 
मयकदे से ज़रा दूर उस मोड़ पर 
दो बदन प्यार की आग में जल गए 

प्यार हर्फे़ वफ़ा[1]... प्यार उनका खु़दा 
प्यार उनकी चिता ।। 

दो बदन प्यार की आग में जल गए ।। 

ओस में भीगते, चाँदनी में नहाते हुए 
जैसे दो ताज़ा रू[2] ताज़ा दम फूल[3] पिछले पहर 
ठंडी ठंडी सबक रौ[4] चमन की हवा 
सर्फे़ मातम[5] हुई 
काली काली लटों से लिपट गर्म रुख़सार[6] पर 
एक पल के लिए रुक गई  

दो बदन प्यार की आग में जल गए ।। 

हमने देखा उन्हें 
दिन में और रात में 
नूरो-ज़ुल्मात में 
मस्जिदों के मीनारों ने देखा उन्हें 
मन्दिरों के किवाड़ों ने देखा उन्हें 
मयकदे की दरारों ने देखा उन्हें ।। 

दो बदन प्यार की आग में जल गए  

अज़ अज़ल ता अबद[7] 
ये बता चारागर[8] 
तेरी ज़न्बील[9] में 

नुस्ख़--कीमियाए मुहब्बत[10] भी है 
कुछ इलाज मदावा--उल्फ़त भी है। 
इक चम्बेली के मंडवे तले 
मयकदे से ज़रा दूर उस मोड़ पर 
दो बदन प्यार की आग में जल गए
शब्दार्थ:
1.  वफ़ादारी की बात
2.  आत्मा
3.  ताज़ा खिले हुए फूल
4.  मंद गति से चलने वाली
5.  उदासी से घिर गई
6.  गाल
7.  दुनिया के पहले दिन से दुनिया के अंतिम दिन तक
8.  वैद्य, हकीम
9.  झोली
10.                 प्रेम के उपचार का नुस्खा

No comments:

Post a Comment

केदार के मुहल्ले में स्थित केदारसभगार में केदार सम्मान

हमारी पीढ़ी में सबसे अधिक लम्बी कविताएँ सुधीर सक्सेना ने लिखीं - स्वप्निल श्रीवास्तव  सुधीर सक्सेना का गद्य-पद्य उनके अनुभव की व्यापकता को व्...