Tuesday 12 February 2013

अनुकूल वातावरण



                  - दुष्यन्त कुमार 

उड़ते हुए गगन में

परिन्दों का शोर

दर्रों में, घाटियों में

ज़मीन पर

हर ओर...

एक नन्हा-सा गीत

आओ

इस शोरोगुल में

हम-तुम बुनें,

और फेंक दें हवा में उसको

ताकि सब सुने,

और शान्त हों हृदय वे

जो उफनते हैं

और लोग सोचें

अपने मन में विचारें

ऐसे भी वातावरण में गीत बनते हैं।

                                   

2 comments:

केदार के मुहल्ले में स्थित केदारसभगार में केदार सम्मान

हमारी पीढ़ी में सबसे अधिक लम्बी कविताएँ सुधीर सक्सेना ने लिखीं - स्वप्निल श्रीवास्तव  सुधीर सक्सेना का गद्य-पद्य उनके अनुभव की व्यापकता को व्...