कुछ तकनीकी समस्याओं के चलते आज की शनिवारीय चर्चा आपके समक्ष प्रस्तुत नहीं की जा सकी। समस्या शायद मेरे कम्प्यूटर में है। इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूं।
इस दिक्कत में बस यही आवाज निकल रही है.
ये कौन आता है तन्हाइयों में जाम लिए /
-मख़दूम मोहिउद्दीन
ये कौन आता है तन्हाइयों में जाम लिए
चटक रही है किसी याद की कली दिल में
नज़र में रक़्स-ए बहाराँ की सुबहो शाम लिए
किसी निगाह ने झुक कर मेरे सलाम लिए
किसी क़्याल की ख़ुशबू किसी बदन की महक
दर-ए-कफ़स पे खड़ी है सबा पयाम लिए
लबों पे यारे मसीहा नफ़स का नाम लिए
बजा रहा था कहीं दूर कोई शहनाई
शब्दार्थ:
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