Saturday 27 April 2013

सफ़र...

सादर प्रणाम सुधी मित्रों...
कुछ तकनीकी दिक्कतों के कारण विलम्ब से उपस्थित हो पा रहीं हूं, क्षमा करें।
     आज के दौड़ते दौर में वेद-पुराण की उक्तियां शायद पृष्ठभूमि में चली गई हैं,फिर भी आज के अंक की शुरुआत एक वेदोक्ति से करना चाहूंगी-
''अदित्यै रास्नासीन्द्राण्याऽ उष्णीष:। 
पूषासि धर्माय दीष्व।। 
     अर्थात्, हे स्त्री! तू सृष्टि का प्रमुख आधार है। तू गृहस्थ का गौरव है। पृथ्वी के समान पालन करने वाली माता है। तू संसार कार्यों को पूर्ण मनोयोग से सम्पन्न कर।
     ये तो रही दोस्तों वेदों की बात,अब आज के दौर का सफर करते हैं,आपकी ही ज़बानी के साथ- ...

लम्हों का सफ़र: 401. अब तो जो बचा है...

Voice of Silent Majority: घनाक्षरी: ओपन बुक्स ऑनलाइन, चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक-२५ में मेरी रचना (चित्र ओबीओ से साभार) चौड़ी नही छाती मेरी, हौसला तो...

नजरिया: सुनिये गाय का दर्द - गाय के ही श्रीमुख से...

"हैवानियत का आलम' | भूली-बिसरी यादें

रंग-बिरंगी कुण्डलियाँ: कुण्डलिया - भारत की हम बेटियाँ, सीमापर तैनात: भारत की हम बेटियाँ, सीमापर तैनात। निर्भय हो मेरे वतन, खाएंगे रिपु मात॥ खाएंगे रिपु मात, प्राण से भी जाएंगे, कुटिल इर...

सिंहनाद: ये मेरा खरगोश, बड़ा ही प्यारा-प्यारा (रोला छंद): ये मेरा खरगोश, बड़ा ही प्यारा-प्यारा, गुलथुल, गोल-मटोल, सभी को लगता न्यारा। खेले मेरे साथ, नित्यदिन छुपम-छुपाई, चो...

Zindagi se muthbhed: अज़ीज़ जौनपुरी क्रूर नियति

Wings of Fancy: क्या जीवन है/हाइकू: १ बालू का स्थल जलाभास रश्मि से तपती प्यास २ प्रीति सुमन नागफनी का बाग व्यर्थ खोजना ३ तृप्ति कामना घी दहकाए ज्वाला पूर्ति आहुति ४...

शब्दिका : मन मन ही मन में घुलता है: चुप चाप समाधि सी बैठूं जीवन क्या यही शिथिलता है   मन सदा अशांत ही रहता है मन मन ही मन में घुलता है   खोकर अपना नन्हा सा शिशु न ...

 बदलाव नहीं होगा क्योंकि.......शब्दिका : सुमरि होरी रे! / लम्टेरा विधा: बुन्देली क्षेत्र में फाग के अवसर पर पुरुष और महिलाओं के समूह द्वारा गाया जाने वाला गीत   सुमरि होरी रे! / लम्टेरा विधा सुमरि  होरी रे!...

 उम्मीद तो हरी है .........: प्यार के खुरदुरेपन ने-------

गीत.......मेरी अनुभूतियाँ: कविता कहाँ है ?????????

नीरज की गृहस्थी: घरेलू नुस्खे:      यह हमारी आपकी पहली मुलाकात है। आशा है आप अपना साथ बनाए रखेंगे। आज शुरूआत करते हैं कुछ घरेलू नुस्खों से।

     इस सप्ताह में अनेकों बर्बर घटनाओं ने झकझोर के रख दिया,इसलिए आपके यथार्थ को बयां करते हुए इन लिंक्स ने चित्त को बहुत आकर्षिक किया। एक आशा के साथ विदा लेना चाहूंगी कि आने वाला सप्ताह सुखद रहे,जिससे मैं भी आपके साथ एक मुस्कान के साथ उपस्थित हो सकूं। अन्त में एक और वेदोक्ति-
                                        ''उलूकयातुं शुशुलूकयातुं जहि श्वयातुमुत कोयातुम्।
                   सुपर्णयातुमुत गृध्रयातुं दृषदेव प्र मृण रक्ष इन्द्र।।''-अथर्ववेद.८/४/२२ 
     अर्थात्, उल्लू के समान अज्ञानी,मोहग्रस्त,भेड़िये जैसा राग-द्वेष से युक्त,कोक जैसा कामातुर और गिद्ध जैसा लालची मत बनो।हे मनुष्यो! तुम इनको कुचल के रख दे तभी तेरा उत्कर्ष होगा।
         सादर!

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