Thursday 30 May 2013
बच्चन जी की दो कविताएं
आज परम् वन्दनीय हरिवंश राय बच्चन जी की कविताएं पढ़ रही थी,चाहे जितनी बार पढ़ीं जाएं पर नवीनता कम होती ही नहीं। यही तो विलक्षणता है उस महान साहित्य के पुरोधा में! आपसे से भी साझा करते हैं उनकी दो रचनाएं- राजभाषा हिंदी: यह पपीहे की रटन हैराजभाषा हिंदी: उस पार न जाने क्या होगा!…. हरिवंश राय बच्चनसादर
Saturday 25 May 2013
विधाओं की बहार...
सादर अभिनन्द सुधी वृन्द!
आज की प्रस्तुति में आपका स्वागत् है। कहते हैं न दोस्तों, कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। तो आज के साहित्य में समाज की जिज्ञासा, उत्साह और हुनर स्पष्ट प्रतिबिम्बित होती है। लेकिन दूसरी तरफ लोकप्रियता की अतिशय चाहत भी प्रतिध्वनित होती है। आज के साहित्य पर प्रकाश डाला जाए तो विधाओं की एक बहार सी है। हमारे वरिष्ठ विद्वत जन, जो साहित्य के पुरोधा हैं, अपनी लेखनी से अनेक विधाओं को तराश ही रहे हैं, युवा/नवीन साहित्यकारों की भी लेखनी अजमाइश में पीछे नहीं है और सफल भी हो रहे हैं। विधाओं में चाहे गज़ल, गीत, नवगीत हो या कुछ पाश्चात्य विधाएं, आतुकान्त कविता हो या अनेक भारतीय छन्द...अपने यौवन पर हैं, देखें इन सूत्रों के साथ-
सॉनेट/ आस सी भरती
सॉनेट/ तुम आ जाओ: 14 पंक्तियां, 24 मात्रायें तीन बंद (Stanza) पहले व दूसरे बंद में 4 पंक्तियां पहली और चौ थी पंक्ति तुकान्त दूसरी व तीसरी पंक्ति
दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की):
ग़ज़ल : कदम डगमगाए जुबां लडखडाये: ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 31 वें में सम्मिलित ग़ज़ल:- विषय : "मद्यपान निषेध" बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम (१२२, १२२, १२२, १२२) ...
रूप-अरूप: तुम बिन बहुत उदास है कोई.....: उदासी की पहली किस्त.... * * * * सारी रात की जागी आंखों ने भोर के उजाले में अपनी पलकें बंद की ही थी..........कि तभी कानों में आवाज आई...
अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ): कुण्डलिया छंद -: कुण्डलिया छंद - चम-चम चमके गागरी,चिल-चिल चिलके धूप नीर भरन की चाह में , झुलसा जाये रूप झुलसा जाये रूप ...
शब्दिका : डमरू घनाक्षरी / गीतिका 'वेदिका': डमरू घनाक्षरी अर्थात बिना मात्रा वाला छंद ३२ वर्ण लघु बिना मात्रा के ८,८,८,८ पर यति प्रत्येक चरण में लह कत दह कत, मनस पवन सम धक् धक्...
उच्चारण: "कहाँ गयी केशर क्यारी?" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री...: आज देश में उथल-पुथल क्यों , क्यों हैं भारतवासी आरत ? कहाँ खो गया रामराज्य , और गाँधी के सपनों का भारत ? आओ मिलकर आज विचारें ...
hum sab kabeer hain: आदमी बनने की शर्त: मेरी कुछ शर्त है, आदमी बनने की. मुझे एक घोड़ा चाहिए, ताकि सवारी कर सकूं, ख़्वाहिशों की सड़क पर. रौंद सकूं तुम्हारे, ख्यालात के महलों ...
नूतन ( कहानियाँ ): तुम सा गर हो साथी: रौनक दौड़ता हुआ आया और माँ को पकड़ कर गोल गोल घूमता हुआ बोला , “माँ मै पास हो गया ! माँ तेरा बेटा आई ए एस बन गया । माँ आज पापा जरूर खुश हो...
बूँद..बूँद...लम्हे....: **~मैं करूँ तो क्या ? ~ क्षणिकाएँ **: १. अनजाने में ही सही.... तुमने ही खड़े किए बाँध... अना के.... वरना..... मेरी फ़ितरत तो पानी -सी थी....!
एक कली दो पत्तियां: चंद हाइकु: कुछ समय पहले कुछ हाइकु लिखे थे जो hindihaiku.wordpress.com पर प्रकाशित हुए थे। आज सोचा उसे यहां भी शेयर करूं।
रचनाकार: पद्मा मिश्रा का आलेख -- साहित्य सृजन -और ऑन लाइन पत्रिकाएं
आज के अंक में इतना ही..
फिर मिलेंगें तबतक के लिए नमस्कार! जय हो!
आज की प्रस्तुति में आपका स्वागत् है। कहते हैं न दोस्तों, कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। तो आज के साहित्य में समाज की जिज्ञासा, उत्साह और हुनर स्पष्ट प्रतिबिम्बित होती है। लेकिन दूसरी तरफ लोकप्रियता की अतिशय चाहत भी प्रतिध्वनित होती है। आज के साहित्य पर प्रकाश डाला जाए तो विधाओं की एक बहार सी है। हमारे वरिष्ठ विद्वत जन, जो साहित्य के पुरोधा हैं, अपनी लेखनी से अनेक विधाओं को तराश ही रहे हैं, युवा/नवीन साहित्यकारों की भी लेखनी अजमाइश में पीछे नहीं है और सफल भी हो रहे हैं। विधाओं में चाहे गज़ल, गीत, नवगीत हो या कुछ पाश्चात्य विधाएं, आतुकान्त कविता हो या अनेक भारतीय छन्द...अपने यौवन पर हैं, देखें इन सूत्रों के साथ-
सॉनेट/ आस सी भरती
सॉनेट/ तुम आ जाओ: 14 पंक्तियां, 24 मात्रायें तीन बंद (Stanza) पहले व दूसरे बंद में 4 पंक्तियां पहली और चौ थी पंक्ति तुकान्त दूसरी व तीसरी पंक्ति
दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की):
ग़ज़ल : कदम डगमगाए जुबां लडखडाये: ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 31 वें में सम्मिलित ग़ज़ल:- विषय : "मद्यपान निषेध" बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम (१२२, १२२, १२२, १२२) ...
रूप-अरूप: तुम बिन बहुत उदास है कोई.....: उदासी की पहली किस्त.... * * * * सारी रात की जागी आंखों ने भोर के उजाले में अपनी पलकें बंद की ही थी..........कि तभी कानों में आवाज आई...
अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ): कुण्डलिया छंद -: कुण्डलिया छंद - चम-चम चमके गागरी,चिल-चिल चिलके धूप नीर भरन की चाह में , झुलसा जाये रूप झुलसा जाये रूप ...
शब्दिका : डमरू घनाक्षरी / गीतिका 'वेदिका': डमरू घनाक्षरी अर्थात बिना मात्रा वाला छंद ३२ वर्ण लघु बिना मात्रा के ८,८,८,८ पर यति प्रत्येक चरण में लह कत दह कत, मनस पवन सम धक् धक्...
उच्चारण: "कहाँ गयी केशर क्यारी?" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री...: आज देश में उथल-पुथल क्यों , क्यों हैं भारतवासी आरत ? कहाँ खो गया रामराज्य , और गाँधी के सपनों का भारत ? आओ मिलकर आज विचारें ...
hum sab kabeer hain: आदमी बनने की शर्त: मेरी कुछ शर्त है, आदमी बनने की. मुझे एक घोड़ा चाहिए, ताकि सवारी कर सकूं, ख़्वाहिशों की सड़क पर. रौंद सकूं तुम्हारे, ख्यालात के महलों ...
नूतन ( कहानियाँ ): तुम सा गर हो साथी: रौनक दौड़ता हुआ आया और माँ को पकड़ कर गोल गोल घूमता हुआ बोला , “माँ मै पास हो गया ! माँ तेरा बेटा आई ए एस बन गया । माँ आज पापा जरूर खुश हो...
बूँद..बूँद...लम्हे....: **~मैं करूँ तो क्या ? ~ क्षणिकाएँ **: १. अनजाने में ही सही.... तुमने ही खड़े किए बाँध... अना के.... वरना..... मेरी फ़ितरत तो पानी -सी थी....!
एक कली दो पत्तियां: चंद हाइकु: कुछ समय पहले कुछ हाइकु लिखे थे जो hindihaiku.wordpress.com पर प्रकाशित हुए थे। आज सोचा उसे यहां भी शेयर करूं।
रचनाकार: पद्मा मिश्रा का आलेख -- साहित्य सृजन -और ऑन लाइन पत्रिकाएं
आज के अंक में इतना ही..
फिर मिलेंगें तबतक के लिए नमस्कार! जय हो!
Thursday 23 May 2013
ये कौन आता है तन्हाइयों में जाम लिए
- मख़दूम मोहिउद्दीन
ये कौन आता है तन्हाइयों में जाम लिए
जिलों[1] में चाँदनी रातों का एहतमाम लिए
चटक रही है किसी याद की कली दिल में
नज़र में रक़्स-ए बहाराँ की सुबहो शाम लिए
हुजूमे बादा-ओ-गुल[2] में हुजूमे याराँ में
किसी निगाह ने झुक कर मेरे सलाम लिए
किसी क़्याल की ख़ुशबू किसी बदन की महक
दर-ए-कफ़स पे खड़ी है सबा पयाम लिए
महक-महक के जगाती रही नसीम-ए-सहर[3]
लबों पे यारे मसीहा नफ़स का नाम लिए
बजा रहा था कहीं दूर कोई शहनाई
उठा हूँ, आँखों में इक ख़्वाब-ए नातमाम[4] लिए
जिलों[1] में चाँदनी रातों का एहतमाम लिए
चटक रही है किसी याद की कली दिल में
नज़र में रक़्स-ए बहाराँ की सुबहो शाम लिए
हुजूमे बादा-ओ-गुल[2] में हुजूमे याराँ में
किसी निगाह ने झुक कर मेरे सलाम लिए
किसी क़्याल की ख़ुशबू किसी बदन की महक
दर-ए-कफ़स पे खड़ी है सबा पयाम लिए
महक-महक के जगाती रही नसीम-ए-सहर[3]
लबों पे यारे मसीहा नफ़स का नाम लिए
बजा रहा था कहीं दूर कोई शहनाई
उठा हूँ, आँखों में इक ख़्वाब-ए नातमाम[4] लिए
शब्दार्थ:
Saturday 18 May 2013
महानगर में यौवन आया
जयहिन्द स्नेही सुधीवृन्द... आज के अंक में आपका हृदयातल से स्वागत है। शुरुआत एक खुशखबर के साथ,वह यह कि आज याने 18/05/2013 से अपने शहर लखनऊ में ओ.बी.ओ.(open book online) की तरफ से एक साहित्यिक चैप्टर की शुरुआत होने जा रही है,जिसमें प्रबन्धन सहयोग आदरणीय श्री बृजेश सर का भी रहेगा। उद्धाटन स्वरूप एक साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। समय होने पर आदरणीय सर से सम्पर्क कर जरूर पधारें,महानगर में यौवन आया है-
मेरे मन की: लहरें: प्रवीण पाण्डेय जी का नाम खुद अपने आप में परिचय है उनका --- और उसी तरह उनके ब्लॉग का नाम- न दैन्यं न पलायनम भी .... प्रस्तुत है उनकी ... आज के अंक में इतना ही ,अगले सप्ताह फिर मुलाकात होगी दोस्तों। तब तक के लिए नमस्कार। स्नेह बनाए रखें। सादर
नवगीत की ओर: महानगर में यौवन आया
गजोधर भाई, आप तो शराब नहीं पीते थे!/ जवाहर - Open Books Online
रूप-अरूप: मन की उलझन.......: अचानक थम जाए, चलती हवा और सांझ डूबने को हो तो लगता है किसी के बेवक्त चले जाने का मातम मना रही हो वादियां.... * * * * * फिर आया था ...
उच्चारण: "गांधी हम शरमिन्दा हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री '...: असत्य की जीत सत्य की हार मची हुई है चीख-पुकार सूरज उगल रहा है अन्धकार चारों ओर है मारा-मार सूरज है ठण्डा चाँ...
ग़ज़ल - शिवाजी भी यहीं के हैं, नहीं क्यों याद आता है - Open Books Online
hum sab kabeer hain: ताज़ा गोश्त: पूरे पंद्रह सौ... सर ! ही.. ही.. ही.. ताज़ा गोश्त हैं ! आदिवासी लड़कियां हैं ! पैसे वसूल होंगे... सर ! घबराइये ना, पलामू से दिल्ली-...
ग़ज़ल : चोरी घोटाला और काली कमाई - Open Books Online
भयाक्रांत भविष्य से.... Voice of Silent Majority: मधुशाला: हर सांस यहां अटकी भटकी फिर भी प्यारी यह मधुशाला कितने जीवन बरबाद हुए आबाद रही पर मधुशाला साकी के नयनों से छलकी ...
गजोधर भाई, आप तो शराब नहीं पीते थे!/ जवाहर - Open Books Online
रूप-अरूप: मन की उलझन.......: अचानक थम जाए, चलती हवा और सांझ डूबने को हो तो लगता है किसी के बेवक्त चले जाने का मातम मना रही हो वादियां.... * * * * * फिर आया था ...
उच्चारण: "गांधी हम शरमिन्दा हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री '...: असत्य की जीत सत्य की हार मची हुई है चीख-पुकार सूरज उगल रहा है अन्धकार चारों ओर है मारा-मार सूरज है ठण्डा चाँ...
ग़ज़ल - शिवाजी भी यहीं के हैं, नहीं क्यों याद आता है - Open Books Online
hum sab kabeer hain: ताज़ा गोश्त: पूरे पंद्रह सौ... सर ! ही.. ही.. ही.. ताज़ा गोश्त हैं ! आदिवासी लड़कियां हैं ! पैसे वसूल होंगे... सर ! घबराइये ना, पलामू से दिल्ली-...
ग़ज़ल : चोरी घोटाला और काली कमाई - Open Books Online
भयाक्रांत भविष्य से.... Voice of Silent Majority: मधुशाला: हर सांस यहां अटकी भटकी फिर भी प्यारी यह मधुशाला कितने जीवन बरबाद हुए आबाद रही पर मधुशाला साकी के नयनों से छलकी ...
Saturday 11 May 2013
साँझा चूल्हा
सभी मित्रों को नमस्कार!
साहित्य की निर्झर धारा निरंतर प्रवाहमान है। इसी धारा में से कुछ लहरें आपके सम्मुख लिंक्स के रूप में प्रस्तुत हैं -
http://sadalikhna.blogspot.in/2013/04/blog-post_26.html
उच्चारण: "दर्द दिल में जगा दिया उसने" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
उम्मीद तो हरी है .........: प्यार के खुरदुरेपन ने-------: वर्षों से सम्हाले प्यार के खुरदुरेपन ने
भावाभिव्यक्ति: अंधेरा
.डॉ. आशुतोष वाजपेयी का काव्य संग्रह : स्वाभिमान जा रहा: एक क्लीव को बना दिया है देश का प्रधान देख निर्विरोध बढ़ा शत्रु चला आ रहा या कि पहुँचा दिया गया है ढेर अर्थ उसे चीन का बना दलाल शत्रु को ...
सिंहनाद: ग़ज़ल - शिवाजी भी यहीं के हैं, नहीं क्यों याद आता ...: कोई पगड़ी कुचलता तो कोई आँखें दिखाता है। सहन करने लगे हम तो हमें जग आजमाता है। सभी कहते अरे भाई, हमारा देश गाँधी का, शिवाजी भी यहीं के...
नीरज: पीसते हैं चलो ताश की गड्डियां
उम्मीद तो हरी है .........: मन का दुखड़ा सुनाता है--------
मेरे सपनों की दुनिया: मेरे अरमानों की चादर: बेख़बर थे तुम कुछ ऐसे मेरी नज़रों के सामने गहरी नींद में सोये हुए, कि तुम्हें आज तक भी चल ना पाया इस बात का पता कि अपनी पसंद की ...
उच्चारण: "आ गये नेता नंगे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक...: लोकतन्त्र में हो रहा, गन्दा कारोबार। शोक सभा में कर रहे, वोटों का व्यापार।। कराने झगड़े-दंगे। आ गये नेता नंगे।। जीते-जी...
शंखनाद: आजादी के बाद से ही हम कूटनीतिक तौर पर विफल साबित ह...: भारत को जब से आजादी मिली है तब से लेकर आज तक हम कूटनीतिक तौर पर विफल साबित होते आ रहें हैं जिसका नतीजा यह हुआ कि हमारे कुछ भूभाग पर चीन १...
ANANYA: अपेक्षा ...............: अपेक्षा के धरातल पर निर्भरता की सीढ़ी ... चेतना संभाल कर रखे कितना ही पाँव जड़ता आती ही जाती है हर सीढ़ी के बाद .... .......
kavya pushpanjali By Mohan Srivastava: भजन(कान्हा -कान्हा पुकारु गलियो मे): कान्हा -कान्हा पुकारु गलियो मे... मै बावरी हो गई उसकी कोई सुझे नहि काम रातो-दिन मै व्याकुल होकर कहती आ मेरे श्याम कान्हा-कान्हा.... ...
HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR: (घनाक्षरी) प्रज्ञा पुंज
अब मुझे आज्ञा दीजिए। आशा है आप अपना स्नेह और आशीष यूं ही बनाए रखेंगे।
सादर!
Saturday 4 May 2013
मुश्किल राहें...
शुभप्रभात् सुहृद मित्रों!
सप्ताहान्त के संग्रह में आप सभी का हृदयातल से स्वागत है। इस बार 'मजदूर दिवस' नें साहित्य को खासी गति दी, लेकिन मजदूरों के अधिकार को कितनी गति मिली ये तो एक मजदूर ही बता सकता है, पर बेचारे को अपने अधिकारों की जानकारी हो तब न! एक दृश्य यहां साझा करने को मैं बाध्य हो रही हूं- विद्यालय में छात्रों के अभिभावकों के खाता सं. की आवश्यकता हुई सो मैनें खोता सं. लाने को कहा। तभी एक व्यक्ति आया, लाचार आँखे, कांपती आवाज पर चेहरे पर मुस्कान...बोला- ''हमारे पास कोई बैंक की किताब तउ हइ नाइ, मनरेगा वाली रहइ जो प्रधान देतइ नाइं।'' मैंने कहा आप वही ले आइए और उसे अपने पास रखिये ये आपका अधिकार है. बात काटते वो श्रीमान बोले-''अरे दीदी आप तउ यहे बतइहउ, कुछ रोपया परधान कबहूं कबहूं दइ देत हैं, उन्हहू से हाथ धोइ बैठी।'' अब बताइए वो अपने दूसरे अधिकारों को कितना समझते होंगे। आप खुद ही अंदाजा लगा लीजिए।
पिछले दिनों सरबजीत जी की मृत्यु नें झकझोर कर रख दिया। लेकिन भारत की बेटियों का जज्बा कहते बनता है, जब उनसे पूंछा गया कि क्या चाहती हैं, तब सरबजीत की बेटियों ने मुक्त कण्ठ से कहा 'मुझे कुछ नहीं चाहिए, पाक में कैद भारतीयों के लिए कुछ करिये'।
जीवन की राहें बड़ी मुश्किल है। आइए देखते हैं ये लिक्स क्या कहते हैं-
Voice of Silent Majority: मजदूर दिवस: हर वर्ष 1 मई ‘मजदूर दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। देश और समाज के विकास में मजदूरों के योगदान पर चर्चा होती है, उन्हें लाल, पीला, न...
ज्ञान दर्पण : विविध विषयों का ब्लॉग: जब भ्रष्टाचार बनेगा गरीबी मिटाने का औजार
अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ): मजदूर दिवस – 1 मई पर...............: नहीं खुद को बसा पाये, सभी का घर बनाते हैं | (चित्र गूगल से साभार) कुदाली - फावड़ा लेकर , सृजन के गीत गाते हैं नहीं है पास...
उम्मीद तो हरी है .........: कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?: मजदूर दिवस पर----- स्वतंत्र भारत के प्राकृतिक वातावरण में हम बेरोक टोक सांस ले रहे हैं, पर एक वर्ग ऐसा है,...
SADA: पुराने नियम बदल डालो !!!!!!
नयी उड़ान : क्यूंकि यही तो जीवन है ...
उन्नयन (UNNAYANA): सरबजीत तुमसे ----
"बस यूँ ही " .......अमित: " नापाक माटी में मौत एक पाक की .....": वरण किया था , तभी मृत्यु का , कैद हुआ था , जब परदेस । हाँ ! याद आया , और बहुत याद आया , तेरा साया कभी , कभी बच्चों का ...
Voice of Silent Majority: हाइकू/ बचपन: 1 ये बचपन परी, तितली, कथा सुन्दर मन ! 2 कोमल काया न छल, न कपट दंभ न माया। 3 मां का आंचल प्यार और ...
मेरे सपनों की दुनिया: अजनबी...: अजनबी होना दूसरों के लिए, शायद बचा लेता है हमें गुनाहगार साबित होने से, लेकिन होना अजनबी खुद ही से खड़ा कर देता है कई सारे ऐसे सवाल...
Sankalp's Pencil Strokes: Wild Dogईश्वर सरबजीत की बेटियों और परिवार शक्ति प्रदान करे। बस दोस्तों इसी के विदा चाहूंगी,फिर मिलते हैं... नमस्कार,शुभदिन सादर
सप्ताहान्त के संग्रह में आप सभी का हृदयातल से स्वागत है। इस बार 'मजदूर दिवस' नें साहित्य को खासी गति दी, लेकिन मजदूरों के अधिकार को कितनी गति मिली ये तो एक मजदूर ही बता सकता है, पर बेचारे को अपने अधिकारों की जानकारी हो तब न! एक दृश्य यहां साझा करने को मैं बाध्य हो रही हूं- विद्यालय में छात्रों के अभिभावकों के खाता सं. की आवश्यकता हुई सो मैनें खोता सं. लाने को कहा। तभी एक व्यक्ति आया, लाचार आँखे, कांपती आवाज पर चेहरे पर मुस्कान...बोला- ''हमारे पास कोई बैंक की किताब तउ हइ नाइ, मनरेगा वाली रहइ जो प्रधान देतइ नाइं।'' मैंने कहा आप वही ले आइए और उसे अपने पास रखिये ये आपका अधिकार है. बात काटते वो श्रीमान बोले-''अरे दीदी आप तउ यहे बतइहउ, कुछ रोपया परधान कबहूं कबहूं दइ देत हैं, उन्हहू से हाथ धोइ बैठी।'' अब बताइए वो अपने दूसरे अधिकारों को कितना समझते होंगे। आप खुद ही अंदाजा लगा लीजिए।
पिछले दिनों सरबजीत जी की मृत्यु नें झकझोर कर रख दिया। लेकिन भारत की बेटियों का जज्बा कहते बनता है, जब उनसे पूंछा गया कि क्या चाहती हैं, तब सरबजीत की बेटियों ने मुक्त कण्ठ से कहा 'मुझे कुछ नहीं चाहिए, पाक में कैद भारतीयों के लिए कुछ करिये'।
जीवन की राहें बड़ी मुश्किल है। आइए देखते हैं ये लिक्स क्या कहते हैं-
Voice of Silent Majority: मजदूर दिवस: हर वर्ष 1 मई ‘मजदूर दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। देश और समाज के विकास में मजदूरों के योगदान पर चर्चा होती है, उन्हें लाल, पीला, न...
ज्ञान दर्पण : विविध विषयों का ब्लॉग: जब भ्रष्टाचार बनेगा गरीबी मिटाने का औजार
अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ): मजदूर दिवस – 1 मई पर...............: नहीं खुद को बसा पाये, सभी का घर बनाते हैं | (चित्र गूगल से साभार) कुदाली - फावड़ा लेकर , सृजन के गीत गाते हैं नहीं है पास...
उम्मीद तो हरी है .........: कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?: मजदूर दिवस पर----- स्वतंत्र भारत के प्राकृतिक वातावरण में हम बेरोक टोक सांस ले रहे हैं, पर एक वर्ग ऐसा है,...
SADA: पुराने नियम बदल डालो !!!!!!
नयी उड़ान : क्यूंकि यही तो जीवन है ...
उन्नयन (UNNAYANA): सरबजीत तुमसे ----
"बस यूँ ही " .......अमित: " नापाक माटी में मौत एक पाक की .....": वरण किया था , तभी मृत्यु का , कैद हुआ था , जब परदेस । हाँ ! याद आया , और बहुत याद आया , तेरा साया कभी , कभी बच्चों का ...
Voice of Silent Majority: हाइकू/ बचपन: 1 ये बचपन परी, तितली, कथा सुन्दर मन ! 2 कोमल काया न छल, न कपट दंभ न माया। 3 मां का आंचल प्यार और ...
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Sankalp's Pencil Strokes: Wild Dogईश्वर सरबजीत की बेटियों और परिवार शक्ति प्रदान करे। बस दोस्तों इसी के विदा चाहूंगी,फिर मिलते हैं... नमस्कार,शुभदिन सादर
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संदीप द्विवेदी (वाहिद काशीवासी) आज के समय में हमारे देश में काव्य की अनेक विधाएँ प्रचलित हैं जो हमें साहित्य के रस से सिक्त कर आनंदित करती ह...
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10 सितंबर , 1932 को अल्मोड़ा (उत्तराखंड) के गाँव ओलियागाँव के एक किसान परिवार में जन्मे शेखर जोशी कथा-लेखन को दायित्वपूर्ण कर्म मानते है...
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