Saturday 11 May 2013

साँझा चूल्हा


सभी मित्रों को नमस्कार!
साहित्य की निर्झर धारा निरंतर प्रवाहमान है। इसी धारा में से कुछ लहरें आपके सम्मुख लिंक्स के रूप में प्रस्तुत हैं -

अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ): साँझा चूल्हा खो गया...: कुण्डलिया छंद साँझा चूल्हा खो गया , रहा न अब वो स्वाद शहर लीलते खेत नित , बंजर करती खाद बंजर   करती   खाद , गुमे  मिट्टी के  ...

http://sadalikhna.blogspot.in/2013/04/blog-post_26.html

उच्चारण: "दर्द दिल में जगा दिया उसने" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

उम्मीद तो हरी है .........: प्यार के खुरदुरेपन ने-------: वर्षों से सम्हाले  प्यार के खुरदुरेपन ने

भावाभिव्यक्ति: अंधेरा

.डॉ. आशुतोष वाजपेयी का काव्य संग्रह : स्वाभिमान जा रहा: एक क्लीव को बना दिया है देश का प्रधान देख निर्विरोध बढ़ा शत्रु चला आ रहा या कि पहुँचा दिया गया है ढेर अर्थ उसे चीन का बना दलाल शत्रु को ...

सिंहनाद: ग़ज़ल - शिवाजी भी यहीं के हैं, नहीं क्यों याद आता ...: कोई पगड़ी कुचलता तो कोई आँखें दिखाता है।  सहन करने लगे हम तो हमें जग आजमाता है। सभी कहते अरे भाई, हमारा देश गाँधी का, शिवाजी भी यहीं के...

नीरज: पीसते हैं चलो ताश की गड्डियां

उम्मीद तो हरी है .........: मन का दुखड़ा सुनाता है--------

मेरे सपनों की दुनिया: मेरे अरमानों की चादर: बेख़बर थे तुम कुछ ऐसे मेरी नज़रों के सामने गहरी नींद में सोये हुए, कि तुम्हें आज तक भी  चल ना पाया  इस बात का पता  कि अपनी पसंद की  ...

उच्चारण: "आ गये नेता नंगे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक...: लोकतन्त्र में हो रहा, गन्दा कारोबार। शोक सभा में कर रहे, वोटों का व्यापार।। कराने झगड़े-दंगे। आ गये नेता नंगे।। जीते-जी...

शंखनाद: आजादी के बाद से ही हम कूटनीतिक तौर पर विफल साबित ह...: भारत को जब से आजादी मिली है तब से लेकर आज तक हम कूटनीतिक तौर पर विफल साबित होते आ रहें हैं  जिसका नतीजा यह हुआ कि हमारे कुछ भूभाग पर चीन १...

ANANYA: अपेक्षा ...............: अपेक्षा के धरातल पर  निर्भरता की सीढ़ी ... चेतना संभाल कर रखे  कितना ही पाँव  जड़ता आती ही जाती है  हर सीढ़ी के बाद .... .......

kavya pushpanjali By Mohan Srivastava: भजन(कान्हा -कान्हा पुकारु गलियो मे): कान्हा -कान्हा पुकारु गलियो मे... मै बावरी हो गई उसकी कोई सुझे नहि काम रातो-दिन मै व्याकुल होकर कहती आ मेरे श्याम कान्हा-कान्हा.... ...

HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR: (घनाक्षरी) प्रज्ञा पुंज

अब मुझे आज्ञा दीजिए। आशा है आप अपना स्नेह और आशीष यूं ही बनाए रखेंगे।
सादर!

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