- मख़दूम मोहिउद्दीन
ये कौन आता है तन्हाइयों में जाम लिए
जिलों[1] में चाँदनी रातों का एहतमाम लिए
चटक रही है किसी याद की कली दिल में
नज़र में रक़्स-ए बहाराँ की सुबहो शाम लिए
हुजूमे बादा-ओ-गुल[2] में हुजूमे याराँ में
किसी निगाह ने झुक कर मेरे सलाम लिए
किसी क़्याल की ख़ुशबू किसी बदन की महक
दर-ए-कफ़स पे खड़ी है सबा पयाम लिए
महक-महक के जगाती रही नसीम-ए-सहर[3]
लबों पे यारे मसीहा नफ़स का नाम लिए
बजा रहा था कहीं दूर कोई शहनाई
उठा हूँ, आँखों में इक ख़्वाब-ए नातमाम[4] लिए
जिलों[1] में चाँदनी रातों का एहतमाम लिए
चटक रही है किसी याद की कली दिल में
नज़र में रक़्स-ए बहाराँ की सुबहो शाम लिए
हुजूमे बादा-ओ-गुल[2] में हुजूमे याराँ में
किसी निगाह ने झुक कर मेरे सलाम लिए
किसी क़्याल की ख़ुशबू किसी बदन की महक
दर-ए-कफ़स पे खड़ी है सबा पयाम लिए
महक-महक के जगाती रही नसीम-ए-सहर[3]
लबों पे यारे मसीहा नफ़स का नाम लिए
बजा रहा था कहीं दूर कोई शहनाई
उठा हूँ, आँखों में इक ख़्वाब-ए नातमाम[4] लिए
शब्दार्थ:
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