सादर अभिनन्द सुधी वृन्द!
आज की प्रस्तुति में आपका स्वागत् है। कहते हैं न दोस्तों, कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। तो आज के साहित्य में समाज की जिज्ञासा, उत्साह और हुनर स्पष्ट प्रतिबिम्बित होती है। लेकिन दूसरी तरफ लोकप्रियता की अतिशय चाहत भी प्रतिध्वनित होती है। आज के साहित्य पर प्रकाश डाला जाए तो विधाओं की एक बहार सी है। हमारे वरिष्ठ विद्वत जन, जो साहित्य के पुरोधा हैं, अपनी लेखनी से अनेक विधाओं को तराश ही रहे हैं, युवा/नवीन साहित्यकारों की भी लेखनी अजमाइश में पीछे नहीं है और सफल भी हो रहे हैं। विधाओं में चाहे गज़ल, गीत, नवगीत हो या कुछ पाश्चात्य विधाएं, आतुकान्त कविता हो या अनेक भारतीय छन्द...अपने यौवन पर हैं, देखें इन सूत्रों के साथ-
सॉनेट/ आस सी भरती
सॉनेट/ तुम आ जाओ: 14 पंक्तियां, 24 मात्रायें तीन बंद (Stanza) पहले व दूसरे बंद में 4 पंक्तियां पहली और चौ थी पंक्ति तुकान्त दूसरी व तीसरी पंक्ति
दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की):
ग़ज़ल : कदम डगमगाए जुबां लडखडाये: ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 31 वें में सम्मिलित ग़ज़ल:- विषय : "मद्यपान निषेध" बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम (१२२, १२२, १२२, १२२) ...
रूप-अरूप: तुम बिन बहुत उदास है कोई.....: उदासी की पहली किस्त.... * * * * सारी रात की जागी आंखों ने भोर के उजाले में अपनी पलकें बंद की ही थी..........कि तभी कानों में आवाज आई...
अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ): कुण्डलिया छंद -: कुण्डलिया छंद - चम-चम चमके गागरी,चिल-चिल चिलके धूप नीर भरन की चाह में , झुलसा जाये रूप झुलसा जाये रूप ...
शब्दिका : डमरू घनाक्षरी / गीतिका 'वेदिका': डमरू घनाक्षरी अर्थात बिना मात्रा वाला छंद ३२ वर्ण लघु बिना मात्रा के ८,८,८,८ पर यति प्रत्येक चरण में लह कत दह कत, मनस पवन सम धक् धक्...
उच्चारण: "कहाँ गयी केशर क्यारी?" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री...: आज देश में उथल-पुथल क्यों , क्यों हैं भारतवासी आरत ? कहाँ खो गया रामराज्य , और गाँधी के सपनों का भारत ? आओ मिलकर आज विचारें ...
hum sab kabeer hain: आदमी बनने की शर्त: मेरी कुछ शर्त है, आदमी बनने की. मुझे एक घोड़ा चाहिए, ताकि सवारी कर सकूं, ख़्वाहिशों की सड़क पर. रौंद सकूं तुम्हारे, ख्यालात के महलों ...
नूतन ( कहानियाँ ): तुम सा गर हो साथी: रौनक दौड़ता हुआ आया और माँ को पकड़ कर गोल गोल घूमता हुआ बोला , “माँ मै पास हो गया ! माँ तेरा बेटा आई ए एस बन गया । माँ आज पापा जरूर खुश हो...
बूँद..बूँद...लम्हे....: **~मैं करूँ तो क्या ? ~ क्षणिकाएँ **: १. अनजाने में ही सही.... तुमने ही खड़े किए बाँध... अना के.... वरना..... मेरी फ़ितरत तो पानी -सी थी....!
एक कली दो पत्तियां: चंद हाइकु: कुछ समय पहले कुछ हाइकु लिखे थे जो hindihaiku.wordpress.com पर प्रकाशित हुए थे। आज सोचा उसे यहां भी शेयर करूं।
रचनाकार: पद्मा मिश्रा का आलेख -- साहित्य सृजन -और ऑन लाइन पत्रिकाएं
आज के अंक में इतना ही..
फिर मिलेंगें तबतक के लिए नमस्कार! जय हो!
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केदार के मुहल्ले में स्थित केदारसभगार में केदार सम्मान
हमारी पीढ़ी में सबसे अधिक लम्बी कविताएँ सुधीर सक्सेना ने लिखीं - स्वप्निल श्रीवास्तव सुधीर सक्सेना का गद्य-पद्य उनके अनुभव की व्यापकता को व्...
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संदीप द्विवेदी (वाहिद काशीवासी) आज के समय में हमारे देश में काव्य की अनेक विधाएँ प्रचलित हैं जो हमें साहित्य के रस से सिक्त कर आनंदित करती ह...
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10 सितंबर , 1932 को अल्मोड़ा (उत्तराखंड) के गाँव ओलियागाँव के एक किसान परिवार में जन्मे शेखर जोशी कथा-लेखन को दायित्वपूर्ण कर्म मानते है...
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- डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव जब हम भाषा के वैश्विक परिदृश्य की बात करते हैं तो सबसे पहले हमें भाषा विशेष की क्षमताओं क...
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