Saturday 1 June 2013

अबाधित धार...

जय हिन्द सुहृद मित्रों ! 
सुहानी सी सुबह में सप्ताहांत संकलन के साथ में आपका स्वागत है। चलना जीवन का नाम... है न? अब चाल क्यों न कछुए की रफ्तार से हो, पर निरन्तर चलते रहना चाहिए। निरंतरता का परिणाम तो सदैव सकारात्मक होता है, कुछ देर भले हो जाए । ऐसे ही हमारे निर्झर का प्रवाह भी मंद गति ही सही पर लगातार हो रहा है। कहते हैं, ठहरे हुए जल में भी सड़न उत्पन्न हो जाती है, तो हमारा ठहरना भी उचित नहीं होगा, चलते हैं, आज के रोचक सूत्रों के निर्झर की अबाधित धार में गोते लगाने- 



अज अनन्त निर्विकार प्राणनाथ करुनागार 
 निरुद्वेल निरुद्वेग निश्चल सरोवर चेतसः। 
 अन्तरज्ञ सर्वज्ञ शब्द सर्वथा निरर्थ जानो 

 कोई काँटा चुभा नहीं होता 
दिल अगर फूल सा नहीं होता 
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी 
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता 

 गैस सिलेण्डर कितना प्यारा। 
मम्मी की आँखों का तारा।। 
रेगूलेटर अच्छा लाना। 
सही ढंग से इसे लगाना।।   

 इस जगह कौन रास्ता लाया 
 कुछ अजब दिल से साबका लाया 
 बेख़बर ढूंढते किरन कोई 
 रात की, दिन ये इंतिहा लाया ...

 दिशाएँ अनगिनत  पर रुकावट भी सहस्त्र  ईश्वर देता है  
 पर प्रयास का अर्घ्य भी माँगता है  



 निगाहों में भर ले, 
मुझे प्यार कर ले,  
 खिलौना बनाकर, 
मजा उम्रभर ले,  
 तू सुख चैन सारा, 
दिवाने का हर ले,  

पुष्पों सी हंसने खिलखिलाने वाली तुम, 
 आज खामोश हो। 
 कोई वेदना है पर कहती नहीं। 

 कूद पड़ी वो नीचे चौथे माले से 
 (और ऊपर जाना शायद वश में न रहा होगा...) 
 लहुलुहान पड़ी काया से लिपट कर 
 रो पड़ा हत्यारा पिता जानता था 


 अब पुस्तक हैं बंद हो गयीं, 
 गर्मी की छुट्टियाँ हो गयीं. 
 अब न ज़ल्दी उठना होता, 
 न स्कूल की चिंता होती. 

 तो आप भी तैयार हो जाइए गर्मी की छुट्टियों का भरपूर आनंद लेने के लिए,मुझे भी अनुमति दीजिए एक सप्ताह तक के लिए,फिर मिलेंगे आपकी ही कुछ नई कविताओः के साथ। 

स्वीकार करें करबद्ध नमस्कार! सादर

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