Sunday 28 July 2013

धर्म संगम

शुभम् सुहृद मित्रों...
दोस्तों रमज़ान चल रहे हैं, मुस्लिम भाइयों का पवित्र महीना, धर्म कोई भी हो सभी की मूल शिक्षाएं लगभग वही हैं। अब हम किसी धर्म या संस्कृति को प्रतिष्ठा का विषय मान बैठें तो हमारी अज्ञानता ही तो है। हम 'सत्य' को ही ले लें, तो सभी धर्म सभाषी हैं।
हमारा सनातन धर्म कहता है-
''स वै सत्यमेव वदेत् । एतद्धवै देवा''
शतपथ ब्राम्हण (अर्थात् सत्य का अनुशीलन करने वाले देवत्व को प्राप्त होते हैं। 
वहीं पवित्र इस्लाम कहता है- 
''वला तक़ूलूऽअलऽऽलू अल्लाहि-इल्लऽऽल्हक्क'' 
क़ुरान शरीफ ४/१७९ (अल्हाह की शान में कभी झूठ का प्रयोग मत करो, सदैव सच बोलो।  
सिख धर्म की बात करें तो गुरुनानक जी के वचन हैं- 
 ''रे मन डीगि न डोलियै सीधे मारग धाओ। 
पाछे बाधु डराउणा आगै अगिनि तलाओ।।'' 
बौद्धों का भी मत है- 
''एकं धम्मं अतीतस्स मुसावादिस्स जन्तुनो।'' 
Bible की सुनें तो- 
''Great is truth and might above all things'' 
अन्य धर्म ऐसी ही प्रतिध्वन करते हैं, मतलब सभी धर्म एक ही है, इसलिए सभी धर्मों के लिए समान निष्ठा के साथ चलते हैं, आज के चुनिंदा सूत्रों पर- 


हम जब मथुरा भ्रमण के लिए गए थे तो हमें वहां गाइड और अन्य लोगों से यह जानकारी मिली थी कि अभी भी प्रतिदिन रात को निधि वन में कृष्ण आते हैं... 

उस जगह पर ले चलो जिस जगह पर छांव हो प्रकृति रूनझुन खग की गुनगुन धरती हरित भाव हो खिल उठें पुष्प ... 

बच्चे ही देश के भविष्य हैं. उनके ‘चरित्र निर्माण’ की जिम्मेवारी पैरेंट्स की है. 
ऐसे में बच्चों के सामने पैरेंट्स को आदर्श बनना होगा. ...

मैं डरा-डरा सहमा सा  शाम के धुंधलके में.........  
जैसे ही अपने 'आज' को  पोटली में समेटकर  चार कोस आग...

इन शब्दों को क्या कहूँ....
कभी खुद के लिखे शब्द जख्म दे जाते है....... 
जो हम कहते नही खुद से, 

मेरा घर    
 कहते है  घर गृहणी का होता है  
 लेकिन यह सच नहीं 

मन के आकाश के विभिन्न रंग ------ 

तेरे लिए   

तलाश मेरे ‘मैं’ की ... 
हम के हुजूम में सब 'मैं' होते हैं 
हम कोई आविष्कार नहीं करता  
हाँ वह 'मैं' को अन्धकार दे सकता है
  
एक ही हल 'शून्य' 
'यहाँ' सब कुछ, 
जो पाया जा सकता है पलक झपकते ही खो जाता है, 
इतनी जल्दी कि तुम उसकी एक रेखा भी ढूढ़ पाने में रह जाते हो असमर्थ;... 

चंपा के फूल 

जिसे देख सारे दुख जाते थे भूल मुरझाये 
आज वही चम्पा के फूल आसमान से बरसा पानी या आग जो कभी न सोये वह पीर गयी जाग नाव बही हवा चली कितनी...

धुंध में डूबा ग्रीष्माकाश 

जुलाई अगस्त के महीने मध्यपूर्व में गर्मी के होते हैं। 
कभी ऐसी गर्मी देखी है जब आसमान कोहरे से ढक जाए?   

ईश्वर / मनुष्य / प्रकृति (तीन कवितायें ) 

ईश्वर उसकी आँखें खुली समझ   
उसके लिए एक नारियल फोड़ दो एक बकरा काट दो, 
उसकी आँखें बंद समझ डंडी मार लो, 
बलात्कार कर लो या गला र...

... अन्त भी क़ुरान शरीफ़ की पवित्र पंक्तियों से, उर्दू लिखना तो आता नहीं इसलिए उच्चारण के अनुसार हिन्दी में प्रयास करती हूं- 
व ज़रू ज़ाहिरडल् इस्मि व बातिनहू, 
इन्नडल्लज़ीन यक्सबूनचल्इस्म सपुज़्ज़ौन बिमा, 
कानू पक्तरिफ़ून। 
अर्थात पाप का प्रतिफल इन्सान को अवश्य भोगना पड़ता है, इसलिए अपने बाह्य और आन्तरिक दुष्कर्मों का परिष्कार करें। 
नमाज़ और उर्दू के जानकार भाई बताएंगें, सही है न? 

रमजान की शुभकामनाओं के साथ... 
ख़ुदा हाफ़िज!

No comments:

Post a Comment

केदार के मुहल्ले में स्थित केदारसभगार में केदार सम्मान

हमारी पीढ़ी में सबसे अधिक लम्बी कविताएँ सुधीर सक्सेना ने लिखीं - स्वप्निल श्रीवास्तव  सुधीर सक्सेना का गद्य-पद्य उनके अनुभव की व्यापकता को व्...