नमस्कार सुहृद साहित्यप्रेमियों...
भारतीय साहित्य में अनेक ललित विधाएं हैं,जिनमें साहित्य के पुरोधा तो अपनी लेखनी से लालित्य विखेरते ही रहे हैं, हमारे युवा साथी भी पीछे नहीं हैं। इतने मनोरंजक संसाधनों की भरमार और समय की कमी के चलते भी उनका अध्ययन और लेखन के प्रति उत्साह प्रशंसनीय है। आज हम एक सार्वभौम विधा पर नजर डालते हैं जो विश्व की अनेक भाषाओं में अपना परचम फहरा चुकी है,लेकिन दुखद है कि हिंदी में कोई विशेष उपलब्धि नहीं अर्जित कर सकी। उसका चिर परिचित नाम है- 'सानेट'। हिंदी में त्रिलोचन जी ने शुरुआत की,नामवर सिंह जी ने भी कुछ प्रयास किये,फिर बहुत आगे नहीं बढ सकी। इस समय सानेट का कुछ अस्तित्व फिर उभरता हुआ नजर आ रहा है, आपका सहयोग आशातीत है। हिंदी सानेट को समझें,लिखें और गति दें...इटैलियन,अंग्रेजी,फ्रेंच,आदि अनेक भाषाओं के बाद अब हमारी(हिंदी)बारी है। जहाँ तक मेरे संज्ञान में है आदरणीय बृजेश महोदय ओबीओ मंच के माध्यम से खासी पहल कर रहे हैं,हम सबका सहयोग भी आवश्यक है। इसी शुभेच्छा के साथ चलते हैं आपके सुरम्य सूत्रों पर-
भारतीय साहित्य में अनेक ललित विधाएं हैं,जिनमें साहित्य के पुरोधा तो अपनी लेखनी से लालित्य विखेरते ही रहे हैं, हमारे युवा साथी भी पीछे नहीं हैं। इतने मनोरंजक संसाधनों की भरमार और समय की कमी के चलते भी उनका अध्ययन और लेखन के प्रति उत्साह प्रशंसनीय है। आज हम एक सार्वभौम विधा पर नजर डालते हैं जो विश्व की अनेक भाषाओं में अपना परचम फहरा चुकी है,लेकिन दुखद है कि हिंदी में कोई विशेष उपलब्धि नहीं अर्जित कर सकी। उसका चिर परिचित नाम है- 'सानेट'। हिंदी में त्रिलोचन जी ने शुरुआत की,नामवर सिंह जी ने भी कुछ प्रयास किये,फिर बहुत आगे नहीं बढ सकी। इस समय सानेट का कुछ अस्तित्व फिर उभरता हुआ नजर आ रहा है, आपका सहयोग आशातीत है। हिंदी सानेट को समझें,लिखें और गति दें...इटैलियन,अंग्रेजी,फ्रेंच,आदि अनेक भाषाओं के बाद अब हमारी(हिंदी)बारी है। जहाँ तक मेरे संज्ञान में है आदरणीय बृजेश महोदय ओबीओ मंच के माध्यम से खासी पहल कर रहे हैं,हम सबका सहयोग भी आवश्यक है। इसी शुभेच्छा के साथ चलते हैं आपके सुरम्य सूत्रों पर-
Voice of Silent Majority
सॉनेट: एक परिचय
प्रस्तावना- साहित्य भाषाओं की सीमाओं के परे होता है। तमाम विधायें एक भाषा में जन्म लेकर दूसरी भाषाओं के साहित्य में स्थापित हुईं।...
सॉनेट: एक परिचय
प्रस्तावना- साहित्य भाषाओं की सीमाओं के परे होता है। तमाम विधायें एक भाषा में जन्म लेकर दूसरी भाषाओं के साहित्य में स्थापित हुईं।...
उच्चारण
"चले थामने लहरों को" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मय...
चौकीदारी मिली खेत की, अन्धे-गूँगे-बहरों को।
चोटी पर बैठे मचान की, लगा रहे हैं पहरों को।।
घात लगाकर मित्र-पड़ोसी, धरा हमारी ...
"चले थामने लहरों को" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मय...
चौकीदारी मिली खेत की, अन्धे-गूँगे-बहरों को।
चोटी पर बैठे मचान की, लगा रहे हैं पहरों को।।
घात लगाकर मित्र-पड़ोसी, धरा हमारी ...
जीवन संध्या(गीत, गज़ल)
विश्व में आका हमारे यश कमाना चाहते//गज़ल//
वे सुना है चाँद पर बस्ती बसाना चाहते।
विश्व में आका हमारे यश कमाना चाहते।
लात सीनों पर जनों के, रख चढ़े हैं सीढ़िय..
विश्व में आका हमारे यश कमाना चाहते//गज़ल//
वे सुना है चाँद पर बस्ती बसाना चाहते।
विश्व में आका हमारे यश कमाना चाहते।
लात सीनों पर जनों के, रख चढ़े हैं सीढ़िय..
वागर्थ
जाने कब से दहक रहे हैं ......
जाने कब से दहक रहे हैं .... कविता वाचक्नवी वर्ष 1998 में नागार्जुन की 'हमारा पगलवा' पढ़ते हुए एक अंश पर मन अटक गया था - ...
जाने कब से दहक रहे हैं ......
जाने कब से दहक रहे हैं .... कविता वाचक्नवी वर्ष 1998 में नागार्जुन की 'हमारा पगलवा' पढ़ते हुए एक अंश पर मन अटक गया था - ...
जाने कैसा होता होगा
वीतराग, वैरागी मन !
भोर किरण क्या छू कर उसको
आस कोई जगाती होगी ? ...
भोर किरण क्या छू कर उसको
आस कोई जगाती होगी ? ...
कुछ पल इन अंधेरो में,
मुझे जीने दो..... न जाने क्यों अँधेरे...
अब मुझे अच्छे लगते है... डरती तो मै...
मुझे जीने दो..... न जाने क्यों अँधेरे...
अब मुझे अच्छे लगते है... डरती तो मै...
WORLD's WOMAN BLOGGERS ASSOCIATION
मानव तुम ना हुए सभ्य
आज भी कई होते चीरहरण कहाँ हो कृष्ण***
रही चीखती क्यों नहीं कोई आया उसे बचाने***...
मानव तुम ना हुए सभ्य
आज भी कई होते चीरहरण कहाँ हो कृष्ण***
रही चीखती क्यों नहीं कोई आया उसे बचाने***...
मेरी कलम मेरे जज़्बात
विरहा ( सवैया- दुर्मिल)
विरहा अगनी तन ताप चढ़े, झुलसे जियरा हर सांस जले|
जल से जल जाय जिया जब री, हिय की अगनी कुछ और बले|
कजरा ठहरे छिन नैन नही...
विरहा ( सवैया- दुर्मिल)
विरहा अगनी तन ताप चढ़े, झुलसे जियरा हर सांस जले|
जल से जल जाय जिया जब री, हिय की अगनी कुछ और बले|
कजरा ठहरे छिन नैन नही...
बातें अपने दिल की
यही है, जो है
यही अक्षर समूह हैं
जिसमे अब मेरा सब है
मेरी प्रतिच्छाया, उन्माद, अवसाद
हर्ष, आर्तनाद, आह्लाद
सब यही है वरन मेरे इस नश्वर शरीर...
यही है, जो है
यही अक्षर समूह हैं
जिसमे अब मेरा सब है
मेरी प्रतिच्छाया, उन्माद, अवसाद
हर्ष, आर्तनाद, आह्लाद
सब यही है वरन मेरे इस नश्वर शरीर...
शब्दांकन Shabdankan
हिंदी कहानी कविता लेख
मामला मौलिकता का… प्रेम भारद्वाज
हमारे लेखन में पूर्वजों का लेखन इस तरह शामिल होता है जैसे हमारे मांस में हमारे द्वारा खाए गए जानवरों के मांस- बोर्हेस आप किसी ट्रैफिक ...
हिंदी कहानी कविता लेख
मामला मौलिकता का… प्रेम भारद्वाज
हमारे लेखन में पूर्वजों का लेखन इस तरह शामिल होता है जैसे हमारे मांस में हमारे द्वारा खाए गए जानवरों के मांस- बोर्हेस आप किसी ट्रैफिक ...
आज के लिए इतना ही...
अगले सप्ताह फिर मिलेंगे,
तब तक आज्ञा दीजिए।
तब तक आज्ञा दीजिए।
नमस्कार!
शुभ, शुभ!
सादर!
शुभ, शुभ!
सादर!