Sunday 8 September 2013

अन्नपूर्णा बाजपेयी का आलेख

सहस्त्र्म तु पितृन माता गौरवेणातिरिच्यते

       मनु स्मृति में कहा गया है की दस उपाध्यायों से बढ़कर एक आचार्य होता है, सौ आचार्यों से बढ़कर एक पिता होता है और एक हजार पिताओं से बढ़ कर एक माँ होती है। माँ को संसार में सबसे बड़े एवं सर्वप्रथम विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया है। संतान को जो शिक्षा और संस्कार माँ देती है, वह कोई भी संस्था या विद्यालय नहीं दे सकता। माता के गर्भ से ही यह प्रशिक्षण प्रारम्भ हो जाता है और निरंतर जारी रहता है। हमारे शास्त्रों मे अनेक प्रमाण मिलते है कि माता द्वारा दी गई शिक्षा से संतान को अद्वितीय उपलब्धियां मिली है। वीर अभिमन्यु ने माता के गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदन की विद्या सीख ली थी। शुकदेव मुनि को सारा ज्ञान माँ के गर्भ में ही प्राप्त हो गया था और संसार में आते ही वे वैरागी हो घर त्याग कर चल दिये थे ।

       श्री राम चरित मानस में माता सुमित्रा के उपदेश का बड़ा ही मार्मिक प्रसंग आया है जिसको गोस्वामी तुलसीदास जी ने इन पंक्तियों मे प्रस्तुत किया है –
               
रागु रोषु इरिषा मद मोहू । 
जनि सपनेहु इन्ह के बस होहू ॥
सकल प्रकार विकार बिहाई । 
मन क्रम बचन करेहू सेवकाई ॥
जेहि न रामु बन लहहि कलेसू । 
सुत सोइ करेहु इहइ उपदेसू ॥

        माता सुमित्रा अपने पुत्र लक्ष्मण को समझाते हुए कहती हैं कि श्री राम और सीता का वनगमन राष्ट्र उत्थान और मानव कल्याण के लिए हो रहा है। उनका यह अभियान तभी सफल होगा, जब तुम सपने में भी राग द्वेष, ईर्ष्या, मद, मोह के वश में नहीं होगे और सब प्रकार के विकारों का परित्याग कर मन, वचन और कर्म से उनकी सेवा करोगे। तुम वही करना जो राम तुमसे कहे।
इतनी अच्छी तरह से अपने पुत्र को उन्होने सेवा का मर्म समझा दिया था। पुत्र लक्ष्मण को माता सुमित्रा द्वारा दी गई शिक्षा, समाज तथा राष्ट्र की सेवा करने वाले के लिए सच्ची शिक्षा है। अपने निजी स्वार्थ का त्याग कर परहित के लिए चिंतित होना और कुछ करने के लिए तत्पर होने की शिक्षा एक संस्कार वान माँ ही अपने बच्चे को दे सकती है। माता मदलसा ने अपने बच्चों को लोरी सुनते हुए ही सच्ची शिक्षा दे डाली थी।
       इस तरह से हम पौराणिक काल से ही यह देखते आए है कि बच्चे और माता का संबंध अलौकिक अद्वितीय है। सुसस्कृत माँ ही बच्चे को संस्कार वान बनाने मे सफल रहती है। ‘माँ’ शब्द में एक अनोखी प्यारी सी अनुभूति छिपी हुई है जो बच्चे के जीवन में नएपन का संचार करती है। 


अन्नपूर्णा बाजपेई
प्रभाञ्जलि, 278 विराट नगर, अहिरवा, कानपुर-7 


1 comment:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति आ. अन्नपूर्ण दी बधाई

    ReplyDelete

केदार के मुहल्ले में स्थित केदारसभगार में केदार सम्मान

हमारी पीढ़ी में सबसे अधिक लम्बी कविताएँ सुधीर सक्सेना ने लिखीं - स्वप्निल श्रीवास्तव  सुधीर सक्सेना का गद्य-पद्य उनके अनुभव की व्यापकता को व्...