Monday 30 June 2014

उदय प्रकाश की दो कविताएँ


                         उदय प्रकाश

(१)
पिंजड़ा 

चिड़िया
पिंजड़े में नहीं है.

पिंजड़ा गुस्से में है
आकाश ख़ुश.

आकाश की ख़ुशी में
नन्हीं-सी चिड़िया
उड़ना
सीखती है.
-  -  -  -  -

(२)
दिल्ली

समुद्र के किनारे
अकेले नारियल के पेड़ की तरह है
एक अकेला आदमी इस शहर में.

समुद्र के ऊपर उड़ती
एक अकेली चिड़िया का कंठ है
एक अकेले आदमी की आवाज़

कितनी बड़ी-बड़ी इमारतें हैं दिल्ली में
असंख्य जगमग जहाज
डगमगाते हैं चारों ओर रात भर
कहाँ जा रहे होंगे इनमें बैठे तिज़ारती
कितने जवाहरात लदे होंगे इन जहाजों में
कितने ग़ुलाम
अपनी पिघलती चरबी की ऊष्मा में
पतवारों पर थक कर सो गए होगे.

ओनासिस ! ओनासिस !
यहाँ तुम्हारी नगरी में
फिर से है एक अकेला आदमी

Friday 27 June 2014

ज्योतिर्मयी पन्त की कहानी

                   
 ज्योतिर्मयी पंत 

                   लक्ष्मी कृपा
                        
कविता बुआ अपने मायके आई  हुई थीं. उनके बड़े बेटे और बहू दो बेटियों के माता-पिता बन चुके थे और अब बड़ी बहू बीमारी के कारण माँ नहीं बन सकती थी. अतः बुआ बहुत उदास थीं. पर जब छोटी बहू भी एक पुत्री को जन्म दे चुकी तो उनके सब्र का बाँध टूट गया. दुबारा जब बहू उम्मीद से हुई तो बुआ ने अपनी डॉक्टर भतीजी से बच्चे की लिंग जाँच कराने में मदद चाही. इस बात पर सबने उन्हें इतना भला-बुरा कहा कि  नाराज़ होकर उनहोंने सबसे रिश्ते ही तोड़ डाले. अब वे टोना-टोटका तथा अन्य दवाओं का प्रयोग करवाना चाहती थी इसलिए  अपने गाँव आई थीं कि ज्योतिषियों और तांत्रिकों की मदद  ली जा सके. एक शाम को गाँव के टीले में रहने वाले बाबा जी से मशविरा करने पहुँच गई. मनमाने रूपये ऐंठकर बाबा ने कुछ दवाएँ दे दीऔर कह दिया की गर्भ में अगर लड़की हुई तो अपने आप छुटकारा मिल जाएगा. अगले दिन एक ज्योतिषी के पास जाकर उसे बेटे-बहू और परिवार के सभी जनों की पत्रियाँ दे आईं. पंडित जी ने कहा कि अतिव्यस्तता के कारण वे एक हफ्ते में सारी बातें बता पायेँगे. बुआ को अब घर लौटने की जल्दी थी ताकि तांत्रिक  की दी दवा का प्रयोग कर सकें. बहू को बिना बताए ही यह काम करना था. अब वापस  आकर वह बहू के खान-पान का ध्यान रखने लगीं तो बहू को बहुत ख़ुशी हुई. एक दिन उन्होंने हिम्मत कर उसे दवा खिला ही दी  और प्रतीक्षा करने लगीं. तीसरे दिन बहू की तबियत ख़राब सी होने लगी. बेटा भी घर पर नहीं था. बुआ बोली गर्भावस्था में ऐसा होता ही रहता है कल अस्पताल जाकर दिखा आना. अगली सुबह छोटी बहू को अस्पताल ले जाया गया. तभी पंडित जी ने फोन पर सूचना दी कि  इस बार घर में लक्ष्मी ही आएँगी और उस कन्या के जन्म के साथ  ही घर के वारे-न्यारे हो जायेंगे. अब बुआ जी की हालत देखने लायक हो गयी. करें तो क्या? किसी से कहें तो क्या? डॉक्टर  के पैरों पड़ गयीं कि बहू और बच्चे को बचा ले. मन ही मन न जाने कितनी मनौतियाँ  मना  डालीं. बहू ठीक हो गयी और सुन्दर बेटी का जन्म भी हो गया. पर बुआ खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाईं. वह तो अच्छा हुआ कि दवा नकली थी वरना सारा जीवन खून के अपराध बोध में बीतता. बुआ अभी तक निश्चय नहीं कर पाईं कि उनको लक्ष्मी  के लालच ने  बदला या सचमुच लक्ष्मी देवी कि कृपा से वेएक घृणित पाप से  बच गयीं?                                   



केदार के मुहल्ले में स्थित केदारसभगार में केदार सम्मान

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