Friday 5 September 2014

नाजिम हिकमत की कविताएँ


मनहूस आज़ादी
तुम बेच देते हो –
अपनी आँखों की सतर्कता, अपने हाथों की चमक. 
तुम गूंथते हो लोइयाँ जिंदगी की रोटी के लिये, 
पर कभी एक टुकड़े का स्वाद भी नहीं चखते
तुम एक गुलाम हो अपनी महान आजादी में खटनेवाले. 
अमीरों को और अमीर बनाने के लिये नरक भोगने की आज़ादी के साथ
तुम आजाद हो! 

जैसे ही तुम जन्म लेते हो, करने लगते हो काम और चिंता, 
झूठ की पवनचक्कियाँ गाड़ दी जाती हैं तुम्हारे दिमाग में. 
अपनी महान आज़ादी में अपने हाथों से थाम लेते हो तुम अपना माथा. 
अपने अन्तःकरण की आजादी के साथ
तुम आजाद हो! 

तुम बेहद प्यार करते हो अपने देश को, 
पर एक दिन, उदाहरण के लिए, एक ही दस्तखत में
उसे अमेरिका के हवाले कर दिया ज़ाता है
और साथ में तुम्हारी महान आज़ादी भी. 
उसका हवाईअड्डा बनने की अपनी आजादी के साथ
तुम आजाद हो! 

तुम्हारा सिर अलग कर दिया गया है धड़ से. 
तुम्हारे हाथ झूलते है तुम्हारे दोनों बगल. 
सड़कों पर भटकते हो तुम अपनी महान आज़ादी के साथ. 
अपने बेरोजगार होने की महान आज़ादी के साथ
तुम आजाद हो! 

वालस्ट्रीट तुम्हारी गर्दन ज़कड़ती है
ले लेती है तुम्हें अपने कब्ज़े में. 
एक दिन वे भेज सकते हैं तुम्हें कोरिया, 
ज़हाँ अपनी महान आजादी के साथ तुम भर सकते हो एक कब्र. 
एक गुमनाम सिपाही बनने की आज़ादी के साथ
तुम आजाद हो! 

तुम कहते हो तुम्हें एक इंसान की तरह जीना चाहिए, 
एक औजार, एक संख्या, एक साधन की तरह नहीं. 
तुम्हारी महान आज़ादी में वे हथकडियाँ पहना देते हैं तुम्हें. 
गिरफ्तार होने, जेल जाने, यहाँ तक कि
फाँसी पर झूलने की अपनी आज़ादी के साथ
तुम आजाद हो. 

तुम्हारे जीवन में कोई लोहे का फाटक नहीं, 
बाँस का टट्टर या टाट का पर्दा तक नहीं. 
आज़ादी को चुनने की जरुरत ही क्या है भला -
तुम आजाद हो! 

सितारों भारी रात के तले बड़ी मनहूस है यह आज़ादी. 

(अनुवाद- दिनेश पोसवाल) 

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जीने के बारे में

जीना कोई हंसी-मजाक नहीं,
तुम्हें पूरी संजीदगी से जीना चाहिए
मसलन, किसी गिलहरी की तरह
मेरा मतलब जिंदगी से परे और उससे ऊपर
किसी भी चीज की तलाश किये बगैर.
मतलब जिना तुम्हारा मुकम्मल कारोबार होना चाहिए.
जीना कोई मजाक नहीं,
इसे पूरी संजीदगी से लेना चाहिए,
इतना और इस हद तक
कि मसलन, तुम्हारे हाथ बंधे हों पीठ के पीछे
पीठ सटी हो दीवार से,
या फिर किसी लेबोरेटरी के अंदर
सफ़ेद कोट और हिफाज़ती चश्मे में ही,
तुम मर सकते हो लोगों के लिए—
उन लोगों के लिए भी जिनसे कभी रूबरू नहीं हुए,
हालांकि तुम्हे पता है जिंदगी 
सबसे असली, सबसे खूबसूरत शै है.
मतलब, तुम्हें जिंदगी को इतनी ही संजीदगी से लेना है
कि मिसाल के लिए, सत्तर की उम्र में भी
तुम रोपो जैतून के पेड़—
और वह भी महज अपने बच्चों की खातिर नहीं,
बल्कि इसलिए कि भले ही तुम डरते हो मौत से—
मगर यकीन नहीं करते उस पर,
क्योंकि जिन्दा रहना, मेरे ख्याल से, मौत से कहीं भारी है.

ll

मान लो कि तुम बहुत ही बीमार हो, तुम्हें सर्जरी की जरूरत है—
कहने का मतलब उस सफ़ेद टेबुल से
शायद उठ भी न पाओ.
हालाँकि ये मुमकिन नहीं कि हम दुखी न हों
थोड़ा पहले गुजर जाने को लेकर,
फिर भी हम लतीफे सुन कर हँसेंगे,
खिड़की से झांक कर बारीश का नजारा लेंगे
या बेचैनी से
ताज़ा समाचारों का इंतज़ार करेंगे….
फर्ज करो हम किसी मोर्चे पर हैं—
रख लो, किसी अहम चीज की खातिर.
उसी वक्त वहाँ पहला भारी हमला हो,
मुमकिन है हम औंधे मुंह गिरें, मौत के मुंह में.
अजीब गुस्से के साथ, हम जानेंगे इसके बारे में,
लेकिन फिर भी हम फिक्रमंद होंगे मौत को लेकर
जंग के नतीजों को लेकर, जो सालों चलता रहेगा.
फर्ज करो हम कैदखाने में हों
और वाह भी तक़रीबन पचास की उम्र में,
और रख लो, लोहे के दरवाजे खुलने में 
अभी अठारह साल और बाकी हों
फिर भी हम जियेंगे बाहरी दुनिया के साथ,
वहाँ के लोगों और जानवरों, जद्दोजहद और हवा के बीच—
मतलब दीवारों से परे बाहर की दुनिया में,
मतलब, हम जहाँ और जिस हाल में हों,
हमें इस तरह जीना चाहिए जैसे हम कभी मरेंगे ही नहीं.
यह धरती ठंडी हो जायेगी,
तारों के बीच एक तारा
और सबसे छोटे तारों में से एक,
नीले मखमल पर टंका सुनहरा बूटा—
मेरा मतलब है, यह गजब की धरती हमारी.
यह धरती ठंडी हो जायेगी एक दिन,
बर्फ की एक सिल्ली के मानिंद नहीं
या किसी मरे हुए बादल की तरह भी नहीं
बल्कि एक खोंखले अखरोट की तरह चारों ओर लुढकेगी
गहरे काले आकाश में…
इस बात के लिये इसी वक्त मातम करना चाहिए तुम्हें
–इस दुःख को इसी वक्त महसूस करना होगा तुम्हें—
क्योंकि दुनिया को इस हद तक प्यार करना जरुरी है
अगर तुम कहने जा रहे हो कि “मैंने जिंदगी जी है”…

(अंग्रेजी से अनुवाद –दिगंबर)

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आशावाद

कविताएँ लिखता हूँ मैं
वे छप नहीं पातीं
लेकिन छपेंगी वे.
मैं इंतजार कर रहा हूँ खुश-खैरियत भरे खत का
शायद वो उसी दिन पहुँचे जिस दिन मेरी मौत हो
लेकिन लाजिम है कि वो आएगा.
दुनिया पर सरकारों और पैसे की नहीं
बल्कि अवाम की हुकूमत होगी
अब से सौ साल बाद ही सही
लेकिन ये होगा ज़रूर.

(अंग्रेजी से अनुवाद –दिगंबर)

3 comments:

  1. कवि और कवितायेँ किसी देश काल से बंधी नहीं होती ..बल्कि वो हर इंसान को इंसान होने का एहसास कराती हैं ..हरदम हमेशा ... नादिम हिकमत को पढना .. अपने आपको कुछ ढूंढने जैसा है

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    Replies
    1. सही कहा आपने महिमा जी!

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  2. आपका हार्दिक आभार नादिम हिकमत की प्रस्तुती के लिए आ, बृजेश जी

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