Friday 15 January 2016

नवीन मणि त्रिपाठी के मुक्तक

नारी संवेदना

लिपट  कफ़न  में आबरू को खो  गयी बेटी।
बाप  के कन्धों  पे अर्थी  में सो गयी बेटी।।
ये तख्तो-ताज व ताकत बहुत निकम्मी है।
अलविदा कह  तेरे कानून को  गयी  बेटी।।


हम  शहादत  के  नाम  पर हिसाब  माँगेंगे।
इस  हुकूमत से तो वाजिब  जबाब  माँगेंगे।।
चिताएँ खूब  सजा दी हैं आज  अबला  की।
हर  हिमाकत  पे  तुझ से  इन्कलाब  माँगेंगे।।


पंख  तितली  का कुतर कर गए बयान  तेरे।
तालिबानी  की  शक्ल में हुए  फरमान  तेरे।।
कुर्सियाँ पा  के हुए  तुम भी  बदगुमान  बहुत।
अस्मतें  सारी  लूट  ले  गए दरबान   तेरे।।


लाश  झूली  जो   दरख्तों   पे  शर्म   सार  हुए।
जुर्म   को   जुर्म  ना  कहने  के  इश्तिहार  हुए।।
अब  है  लानत  तेरी  मनहूस   बादशाहत   को।
हौसले   पस्त   तो   बेटी  के  बेशुमार हुए।।


वो  मुहब्बत  का  जनाजा  निकाल ही  देंगे।
तहजीब- ए- तालिबान  दिल  में  डाल  ही देंगे।।
शजर  की   शाख  पे लटकी  ये  आबरू  देखो।
कली  ना  खिल  सके गुलशन  उजाड़  ही देंगे।।


तुम तो  शातिर तेरी ताकत भी कातिल हो गयी।
अब  तेरी सरकार  बेबस और जाहिल  हो गयी।।
इंतकामी    फैसला  फाँसी   लटकती   बेटियाँ।।
चुन  के  लाये थे  तुझे ये  सोच गाफिल हो गयी।।


            देश के नाम

वो  शगूफों  को  तो बस यूँ उछाल देते हैं ।
नफरतों का जहर  वो दिल में डाल देते हैं ।।
कितने शातिर हैं ये कुर्सी  को चाहने  वाले ।
अमन सुकूं का कलेजा  निकाल  लेते हैं ।।


सच की चिनगारी से  हस्ती तबाह कर देंगे |
हड्डियाँ बन के हम फीका कबाब कर देंगे ||
दौलते-मुल्क पे कब्ज़ा हुआ अय्याशों का |
वक्त  आने  पे  हम  सारा हिसाब कर देंगे ||


हम  शहीदों  की  हसरतों  पे  नाज करते हैं |
उनकी जज्बात को हम भी सलाम करते हैं ||
वतन  को  बेचने  वालों जरा  संभल जाना |
तुम्हारे  हश्र  का  अहले- मुकाम  रखते  हैं ||


तुमने  लूटा  है  वतन हमको  बनाना होगा |
देश  के  दर्द  को आँखों में सजाना  होगा ||
भूख से  रोती  जिंदगी  को मौत  दी तुमने |
धन जो काला है उसे  देश  में लाना  होगा ||


वो  हुक्मराँ  हैं  हम पलकें  बिछाए बैठे  हैं |
बात  जो खास है  उसको छिपाये  बैठे  हैं ||
वो   रिश्वतों   के बादशाह   कहे   जाते  हैं |
एक  दूकान   वो  घर  में  लगाये  बैठे   हैं ||


उनके मकसद के चिरागों को जलाते क्यों हो |
बचेगा  देश  भरोसा  ये   जताते   क्यों  हो ||
जो  कमीशन  में  खा गये हैं फ़ौज  की तोपें |
उनकी  बंदूक   से   उम्मीद  लगाते क्यों  हो ||


वो   शहादत  को  फरेबी   करार   कर   देंगे ।
अब   शहीदों   को भी  वो  दागदार कर  देंगे 
सारी  तहजीब  डस  गयी है सियासी नागिन ।
वतन  की  शाख  को  वो तार - तार  कर  देंगे 


          प्रणय के स्वर

तेरी   पाजेब   की  घुघरू ने  दिल  से  कुछ  कहा  होगा |
लबों   ने  बंदिशों   के  सख्त  पहरों   को   सहा   होगा ||
यहाँ   गुजरी   हैं   रातें  किस  कदर  पूछो ना तुम हम से |
तसव्वुर     में    तेरी   तस्वीर  का    हाले-  बयाँ   होगा ||


यहाँ   ढूँढ़ा   वहाँ   ढूँढा  ना   जाने   किस   जहाँ   ढूँढा |
किसी    बेदर्द  हाकिम   से   गुनाहों   की   सजा   ढूँढा ||
वफाओं   के   परिंदे   उड़  गये   हैं   इस  जहाँ  से  अब |
जालिमों   के   चमन  में   मैंने  कातिल   का  पता  ढूँढा |


शमाँ   रंगीन   है   फिर   से   गुले   गुलफाम  हो   जाओ |
मोहब्बत  के  लिए  दिल   से  कभी  बदनाम  हो  जाओ ||
चुभन  का   दर्द   कैसा   है  जख्म   तस्लीम  कर   देगा |
वक्त  की  इस  अदा  पे  तुम भी कत्ले आम  हो  जाओ ||


ये   साकी   की  शराफत  थी  जाम  को कम दिया होगा |
तुम्हारी   आँख  की  लाली  को  उसने  पढ़  लिया  होगा ||
बहुत   खामोशियों   से    मत   पियो  ऐसी   शराबों   को |
छलकती   हैं   ये  आँखों   से   कलेजा  जल  गया  होगा ||


तुम्हारे   हर   तबस्सुम   की   यहाँ   पर    याद   आएगी |
कमी   तेरी    यहाँ   हर   शख्स   को   इतना   सताएगी ||
तुम   हमसे   दूर   जाके  भी  ये  वादा  भूल      जाना |
चले   आना   प्रेम   की   डोर   जब   तुमको   बुलाएगी ||


तुम्हारी  झील  सी  आँखों  में अक्सर  खो  चुके  हैं हम ।
प्यास  जब  भी  हुई  व्याकुल  तो  बादल  बन चुके हैं हम।।
ये  अफसानों  की  है  दुनिया  मुहब्बत की  कहानी   है ।
सयानी  हो   चुकी   हो  तुम  सयाने   हो  चुके  हैं   हम ।।


कदम  फिसले  नहीं  जिसके  वो रसपानों को क्या जाने।
मुहब्बत  की  नहीं  जिसने वो  बलिदानों को क्या जाने ।।
ये  दरिया  आग  का  है  इश्क  में  जलकर  जरा  देखो ।
शमा  देखी  नहीं   जिसने वो  परवानों  को  क्या  जाने ।।


तेरे  जज्बात  के  खत   को  अभी   देकर  गया   कोई ।
दफ़न  थीं  चाहतें उनको   भी   बेघर  कर   गया   कोई ।।
हरे  जख्मों  के  मंजर  की  फकत   इतनी   निशानी  है ।
हमें    लेकर   गयी   कोई  तुम्हें   ले   कर   गया   कोई ।।


मिलन  की  आस  को  लेकर, वियोगी  बन गया था मै।
ज़माने  भर  के  लोगों  का  विरोधी  बन गया  था  मै ।।
रकीबों  के   शहर   में जुल्म   के   ताने   मिले  इतने ।
बद चलन बन गयी थी तुम तो भोगी बन गया था मै।।



Friday 18 December 2015

आधी रात में / पाश

आधी रात में
मेरी कँपकँपी सात रजाइयों में भी न रुकी
सतलुज मेरे बिस्तर पर उतर आया
सातों रजाइयाँ गीली
बुखार एक सौ छह, एक सौ सात
हर साँस पसीना-पसीना
युग को पलटने में लगे लोग
बुख़ार से नहीं मरते
मृत्यु के कन्धों पर जानेवालों के लिए
मृत्यु के बाद ज़िन्दगी का सफ़र शुरू होता है
मेरे लिए जिस सूर्य की धूप वर्जित है
मैं उसकी छाया से भी इनकार कर दूँगा
मैं हर खाली सुराही तोड़ दूँगा
मेरा ख़ून और पसीना मिट्टी में मिल गया है

मैं मिट्टी में दब जाने पर भी उग आऊँगा

Friday 8 May 2015

इस गली के आख़िरी में मेरा घर टूटा हुआ

प्रमोद बेड़िया 

इस गली के आख़िरी में एक घर टूटा हुआ
जैसे बच्चे का खिलौना हो कोई टूटा हुआ ।

उसने मुझको कल कहा था आप आकर देखिए 
रहे सलामत आपका घर मेरा घर टूटा हुआ ।

आप उसको देख कर साबित नहीं रह पाएँगे ,
रोता कलपता सर पटकता मेरा घर टूटा हुआ ।

ज़िंदगी भर जो कमाई की वो सारी गिर गई
कल के तूफ़ाँ में बचा है मेरा घर टूटा हुआ।

आपके स्नानघर के बराबर ही सही 
अब तो वह भी ना बचा है मेरा घर टूटा हुआ।

नौ जने हम सारे रहते थे उसीमें यों जनाब
ज्यों कबूतर पींजड़े में मेरा घर टूटा हुआ ।

आप कम से कम यही कि देखते वो मेरा घर
इस गली के आख़िरी में मेरा घर टूटा हुआ ।

Thursday 7 May 2015

ग़ज़ल में मात्राओं की गणना:

संदीप द्विवेदी (वाहिद काशीवासी)

आज के समय में हमारे देश में काव्य की अनेक विधाएँ प्रचलित हैं जो हमें साहित्य के रस से सिक्त कर आनंदित करती हैं। इनमें कुछ इसी देश की उपज हैं तो कुछ परदेश से भी आई हैं और यहाँ आकर यहाँ के रंग-ढंग में ढल गई हैं। ऐसी ही एक अत्यंत लोकप्रिय काव्य विधा है ग़ज़ल। हमारे समूह में ग़ज़ल की मात्राओं की गणना पर चर्चा करने के लिए मुझे आमंत्रित किया गया है अतः मैं बिना किसी लाग-लपेट के अपनी बात आरंभ करता हूँ।
ग़ज़लें कहने के लिए कुछ निश्चित लयों अथवा धुनों का प्रयोग किया जाता है जिन्हें 'बह्र' के नाम से जाना जाता है। अगर आपका लिखा या कहा हुआ काव्य बह्र में बद्ध नहीं है तो उसे ग़ज़ल नहीं माना जा सकता। बह्र में ग़ज़ल कहने के लिए हमें मात्राओं की गणना का ज्ञान होना आवश्यक है जिसे 'तक़्तीअ' कहा जाता है। अगर हम तक़्तीअ करना सीख लेते हैं तो फिर बह्र भी धीरे-धीरे सध जाती है। हिंदी छंदों के विपरीत, जहाँ वर्णिक छंदों (ग़ज़ल भी वर्णिक छंद ही है) गणों के निश्चित क्रम निर्धारित होते हैं और हर मात्रा का अपने स्थान पर होना अनिवार्य होता है, ग़ज़ल की बह्र में मात्राओं की गणना में छूट भी प्राप्त होती है अर्थात् बह्र से सामंजस्य बैठने के लिए कई बार दीर्घ को लघु गिनने की छूट भी प्राप्त होती है (यहाँ यह स्पष्ट कर दूँ कि मात्रा गणना में मात्रा गिरना किसी नियम के अंतर्गत नहीं आता अपितु यह छूट है)। एक बात और कि यह आलेख छंद और मात्रा गणना से अनभिज्ञ लोगों के लिए उपयोगी नहीं होगा।
हिंदी छंदों के गणों (यथा- यगण, मगण, रगण, जगण आदि) की भाँति ही ग़ज़ल में भी कुछ गण होते हैं, यहाँ अंतर केवल इतना होता है कि बह्र के गणों की मात्राओं में गिरावट भी की जा सकती है जो कि हिंदी छंदों में अनुमत्य नहीं है। उर्दू के कुछ गण (उर्दू में रुक्न) इस प्रकार हैं:
फ़ायलातुन = 2122, मफ़ाईलुन = 1222, फ़ायलुन = 212 आदि।
ग़ज़ल में मात्रा की गणना उच्चारण पर निर्भर करती है और हम सभी को इस बात का बोध है कि उच्चारण का भाषा में कितना महत्वपूर्ण स्थान होता है। हिंदी के वर्णिक छंदों में किसी भी स्थिति में दो लघु मिल कर एक दीर्घ नहीं हो सकते जबकि ग़ज़ल की बह्र में यह सर्वमान्य है। उदाहरण के लिए - अधिक को हिंदी में अ=1 धि=1 क=1 अर्थात् 111 (नगण) गिनेंगे किन्तु ग़ज़ल के नियमानुसार इसकी मात्रा गणना 12 होगी। ग़ज़ल की तक़्तीअ करते समय कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक होता है।
*बिना स्वर के सभी व्यन्जन (क, ख, ग, घ आदि) लघु मात्रिक (1) होते हैं।
*लघु स्वरों (यथा - अ, इ, उ) व अनुनासिक (ँ-चन्द्र बिंदु) के साथ प्रयुक्त व्यन्जन भी लघु मात्रिक ही होते हैं। जैसे सु, नि, भँ आदि।
*दीर्घ स्वरों ( यथा- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ) व अनुस्वार (ं) के साथ प्रयुक्त व्यन्जन दीर्घ मात्रिक होते हैं। जैसे का, पी, जौ, लो, अं आदि।
* किसी भी शब्द में यदि दो लघु मात्रिक व्यन्जन या स्वर उपस्थित हैं तो वे उच्चारण के अनुसार दीर्घ मात्रिक में परिवर्तित हो जाते हैं और यह सदैव होता होता है, उन्हें अपनी सुविधा के अनुसार दो लघु मात्राओं यानी 11 में नहीं गिना जा सकता। यथा - दिल (दि=1+ल=1 दिल=2), तुम (तु=1+म=1 तुम=2) घर (घ=1+र=1 घर=2) तथा जब (ज=1+ब=1 जब=2) इत्यादि। ऐसे ही और शब्द हैं कुछ, पल, रुक, यदि, शव, बद, फिर आदि।
* जिन शब्दों के उच्चारण में दोनों अक्षर अलग-अलग उच्चारित होंगे उन्हें एक दीर्घ (2) न गिन कर दो लघु (11) ही गिनेंगे अन्यथा शब्द का उच्चारण दोषपूर्ण हो जाएगा और उसके अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है। जैसे कि - 'अगणित'; इसमें 'अ' तथा 'ग' का अलग-अलग उच्चारण किया जा रहा है एवं 'णित' का उच्चारण एक साथ किया जा रहा है अतः इसकी मात्रा 112 ही होगी और यह किसी भी स्थिति में 22 नहीं हो सकती। इसी प्रकार 'असमय' शब्द को देखें कि यह 112 का मात्रा संयोजन है और अगर इसे 22 करना चाहें तो यह 'अस्मय' हो जाएगा और अर्थ का अनर्थ भी।
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अब मात्राओं को गिराने के विषय में चर्चा करते हैं। ऊपर हम यह देख चुके हैं कि मात्राओं की गणना ग़ज़ल में किस तरह से की जाती है। मात्रा गिराने के बारे में चर्चा करने से पूर्व एक उदाहरण देखते हैं:-
* आप को देख कर देखता रह गया
इसकी मात्रा गणना इस प्रकार से होगी
आ- प- को- दे- ख- कर- दे- ख- ता- रह- ग- या
2- 1- 2- 2- 1- 2- 2- 1- 2- 2- 1- 2
इस मिसरे में सभी मात्राएँ उचित हैं और कहीं भी गिराई नहीं गई हैं।
अब इसका अगला मिसरा लेते हैं जिसे मिला कर पूरा शे'र बनता है:
* क्या कहूँ और कहने को क्या रह गया
क्या- क- हूँ- औ- र- कह- ने- को- क्या- रह- ग- या
2- 1- 2- 2- 1- 2- 2- 1- 2- 2- 1- 2
यहाँ भी सभी मात्राएँ अपने उचित वज्न में हैं केवल 'को' छोड़ कर। यहाँ 'को' की मात्रा '2' होनी चाहिए किन्तु इस 'को' की मात्रा को गिराते हुए '1' माना गया है और को का उच्चारण एक हद तक 'कु' के समीप आ गया है। यह इस प्रकार होता है कि - जब किसी बह्र में लघु मात्रा के लिए नियत स्थान पर दीर्घ मात्रा आ जाती है तो कुछ विशेष अक्षरों को हम दीर्घ मात्रा की तरह न पढ़ कर उस पर कम दबाव देते हुए उसे लघु मात्रा की तरह उच्चारित करते हैं। हालाँकि इसके लिए यह भी जानना अत्यंत आवश्यक है कि - किन किन दीर्घ मात्रिकों को गिरा कर लघु मात्रिक की तरह प्रयोग किया जा सकता है; किन शब्दों की मात्रा गिराई जा सकती है और किनकी नहीं; तथा शब्दों में किस स्थान पर मात्रा गिराई जा सकती है और किस स्थान पर नहीं?
* आ, ई, ऊ, ए, ओ के संयोग से बनी दीर्घ मात्रा को गिरा कर लघु किया जा सकता है किन्तु ऐ, औ, अं को किसी भी स्थिति में गिराया नहीं जा सकता हालाँकि अपवाद स्वरूप कुछ को इससे छूट भी प्राप्त है। इन अपवाद में - है, हैं, मैं, और शामिल हैं। सबसे अधिक जो गिराए जाते हैं वे हैं - तो, को, जो, ये, में आदि। साथ ही यह ध्यान रखना भी आवश्यक है कि किसी भी शब्द के अंत का ही दीर्घ गिरता है आरंभ का नहीं। किन्तु कुछ अपवाद वाले शब्द यहाँ भी हैं जिनमें सुविधानुसार आदि या अंत किसी की भी मात्रा गिराई जा सकती है जैसे - कोई, मेरी, तेरी। सबसे अधिक ध्यान देने योग्य बात यह कि किसी भी संज्ञावाचक शब्द और हिंदी के तत्सम शब्दों की मात्रा नहीं गिराई जा सकती। हालाँकि अब कई लोग तत्सम शब्दों की मात्रा भी गिराने लगे हैं और इसे स्वीकार भी किया जाने लगा है कई मंचों पर चर्चा के दौरान यह तथ्य सामने आया है। अब आप सुधिजनों की प्रतिक्रियाएँ आमंत्रित हैं।

Sunday 12 April 2015

भाषाओं का वैश्विक परिदृश्य और हिन्दी

              - डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव

जब हम भाषा के वैश्विक परिदृश्य की बात करते हैं तो सबसे पहले हमें भाषा विशेष की क्षमताओं के बारे में आश्वस्त होना पड़ता हैI वैश्विक धरातल पर कोई भी भाषा यूँ ही अनायास उभर कर अपना वर्चस्व नहीं बना सकतीI इसके पीछे भाषा की सनातनता का भी महत्वपूर्ण हाथ हैI स्वतंत्र भारत में जब पह्ला लोक-सभा निर्वाचन हुआ था उस समय हिन्दी भाषा विश्व में पाँचवे पायदान पर थीI आज उसे प्रथम स्थान का दावेदार माना जा रहा हैI अन्य बातें जिनकी चर्चा अभी आगे करेंगे उन्हें यदि छोड़  भी दें तो भाषा की वैश्विकता के दो प्रमुख आधार हैंI प्रथम यह कि आलोच्य भाषा कितने बड़े भू-भाग में बोली जा रही है और उस पर कितना साहित्य रचा जा रहा हैI दूसरी अहम् बात यह है कि वह भाषा कितने लोगों द्वारा व्यवहृत हो रही हैI इस पर विचार करने से पूर्व किसी भाषा का वैश्विक परिदृश्य क्या होना चाहिए और एतदर्थ किसी भाषा विशेष से क्या-क्या अपेक्षाएँ हैं, इस पर चर्चा होना प्रासंगिक एवं समीचीन हैI

      विश्व स्तर पर किसी भाषा के प्रख्यापित होने के लिए यह नितांत आवश्यक है कि उसका एक विशाल और प्रबुद्ध काव्य-शास्त्र हो, उसमें लेखन की एक सुदीर्घ और सुगठित परंपरा हो, साहित्य-भंडार समृद्ध होI उसमें अनेक वैविध्यपूर्ण विधाएँ हों और उन विधाओं पर सतत एवं अव्याहत प्रचुर लेखन प्रवहमान होI साथ ही, उस भाषा की कम से कम एक विधा ऐसी अवश्य हो जो विश्व स्तर पर स्वीकार्यता पा चुकी होI वैश्विक स्तर पर वही भाषा टिक पाएगी जिसका शब्द-भंडार या शब्द-कोश बड़ा होI उस भाषा में औदात्य भी होना चाहिए ताकि वह अपने शब्द-भंडार को निरंतर बढ़ाता जाएI इस लिहाज से हिन्दी का यह सौभाग्य रहा है कि भारत में अनेक विदेशियों ने आकर शासन किया जिनमें तुर्क, मंगोल, अफगान, मुग़ल, फ्रांसीसी, पुर्तगीज और विशेकर अंग्रेज थेI इन शासकों ने अपनी भाषा में दरबार चलाया और देश का शासन कियाI फलस्वरूप हिन्दी भाषा शासकीय भाषाओँ से प्रभावित हुई और उसका शब्द भंडार जो संस्कृत के प्रभाव से पहले ही अत्यधिक समृद्ध था, वह और भी संपन्न होता गयाI आज अरबी, फ़ारसी, उर्दू, फ्रांसीसी, पुर्तगाली और अंग्रेजी आदि भाषाओँ के शब्दों को आत्मसात कर हिन्दी विश्व की श्रेष्ठ भाषाओं की जमात में शामिल हैI
                                               
        वैश्विक स्तर पर भाषा को ज़मने के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण एवं आवश्यक शर्त है वह है भाषा की निज अभिव्यक्ति क्षमता (SELF POWER OF EXPRESSION)I यदि भाषा विश्व के सभी लोगों को अपनी बात समझाने में असमर्थ है या यूँ कहें  की उसमे संप्रेषणीयता का स्तर उच्च नहीं है और भाषा में विचार-विनिमय की आप्यायिनी शक्ति नहीं है, हमारा संलाप (INTERACTION) एकदूसरे को सही तरीके से प्रभावित नहीं कर पा रहा है तो वैश्विक धरातल पर भाषा के टिके रहने का न कोई आधार है और न औचित्य I

        विश्व में हजारों भाषाएँ हैं लेकिन कुछ ही भाषाओँ के साहित्य का स्तर इतना समुन्नत है कि उस भाषा की रचनाओं का अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओँ में होI जिस भाषा का जितना अधिक साहित्य विश्व की अन्यान्य भाषाओँ में अनूदित किए जाने की एक निरंतर परंपरा रहेगी, निश्चित रूप से उसकी प्रयोजनीयता प्रामाणिक मानी जाएगी और विश्व स्तर पर उसकी प्रतिष्ठा अक्षुण्ण बनी रहेगीI डा0 करुणाशंकर उपाध्याय के अनुसार विश्वस्तरीय भाषा ऐसी होनी चाहिए कि  उसमें मानवीय और यांत्रिक अनुवाद की आधारभूत तथा विकसित सुविधा हो जिससे वह बहुभाषिक कम्प्यूटर की दुनिया में अपने समग्र सूचना स्रोत तथा प्रक्रिया सामग्री (सॉफ्टवेयर) के साथ उपलब्ध हो। साथ ही,  वह इतनी समर्थ हो कि वर्तमान प्रौद्योगिकीय उपलब्धियों मसलन ई-मेल, ई-कॉमर्स, ई-बुक, इंटरनेट तथा एस.एम.एस. एवं वेब जगत में प्रभावपूर्ण ढंग से अपनी सक्रिय उपस्थिति का अहसास करा सके।

         वैश्विक परिदृश्य के अंतर्गत भाषा में यह गुण होना भी अपरिहार्य है कि वह आवश्यकता के अनुरूप अपने ही शब्द भंडार से नए शब्द गठित कर सके जैसे हिन्दी ने ट्रेजेडी को त्रासदी और रोमांटिक को रूमानी बनायाI भाषा के इस लचीले गुण से ही पारिभाषिक शब्दावलियाँ गठित होती हैंI शासन के कार्य में आने वाले अनेक शब्दों की बड़ी व्यापक पारिभाषिक शब्दावली हिन्दी में उपलब्ध हैI यही नहीं विज्ञान और प्रौद्द्योगिकी की नित्य संवर्धनशील शब्दावलियाँ हिन्दी भाषा में गठित हुई हैंI वैश्विक भाषा के लिए यह भी आवश्यक है कि वह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की नवीनतम आविष्कृतियों को अभिव्यक्त करते हुए मनुष्य की बदलती जरूरतों एवं आकांक्षाओं को वाणी देने में भी समर्थ हो।

    भाषा-लिपि का भी वैश्विक परिदृश्य में बड़ा महत्त्व हैI लिपि का संगठन वैज्ञानिक आधार पर होना चाहिएI लिपि का सरल एवं सुबोध होना भी आवश्यक हैI लिपि ऐसी न हो कि जिसके विलेखन में आर्टिस्टिक प्रतिभा की आवश्यकता पड़ेI लिपि सरल एवं आयास रहित होनी चाहिए और उसमें परिष्कार की संभावनाएं भी हों जो विलेखन की दुरुहता का परिहार कर सकेंI अक्षर ऐसे हों, जिनके उच्चारण में विशेष आयास की आवश्यकता न हो और जिनका शुद्ध एवं परिष्कृत उच्चारण संभव हो और उनमें संगीतात्मकता एवं लय हो जैसे हिन्दी में स रे ग म --- संगीतात्मक हैंI

         इस संचार युग में जो भाषा समय के साथ ताल से ताल मिलाकर चल सके जिसमें नवीन प्रयोगों और अनुसंधानों को आत्मसात करने की क्षमता हो केवल वही भाषा वैश्विक परिदृश्य पर टिक सकती हैI अतः भाषा को ज्ञान-विज्ञान के तमाम अनुशासनों के अधीन  वाङमय सृजित एवं प्रकाशित करने तथा नए विषयों पर सामग्री तैयार करने हेतु सक्षम होना आवश्यक हैI वैश्विक स्तर के धरातल पर टिकने वाली भाषा से यह भी अपेक्षित है कि वह  नवीनतम वैज्ञानिक एवं तकनीकी उपलब्धियों के साथ अपने आपको पुरस्कृत एवं समायोजित करने की क्षमता से युक्त हो और वह अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक संदर्भों, सामाजिक संरचनाओं,  सांस्कृतिक चिंताओं तथा आर्थिक विनिमय की संवाहक भी हो, साथ ही वह जनसंचार माध्यमों में बडे पैमाने पर देश-विदेश में प्रयुक्त हो रही हो।

        वैश्विक भाषा के लिए जो सर्वाधिक अपेक्षित बात है, वह यह है कि वह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की नवीनतम आविष्कृतियों को अभिव्यक्त कर मनुष्य की बदलती जरूरतों एवं आकांक्षाओं को वाणी देने में भी समर्थ हो तथा उसमे वसुधैव  कुटुम्बकऔर सर्वे भवन्तु सुखिनःजैसी उदात्त भावनाओं का समावेश भी होI

        उपर्युक्त निकष पर जब हम हिन्दी भाषा की परख करते हैं तो हमें अनेक सुखद पहलू दिखाई देते हैंI इसकी देवनागरी लिपि संभवतः विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि हैI यह जैसी लिखी जाती है वैसी ही पढी जाती हैI इसमें अंग्रेजी के GO  और TO  तथा PUT और  BUT जैसा उच्चारण वैषम्य नहीं हैI इसी प्रकार  CALM  और  BALM  जैसे शब्दों में L के साइलेंट होने जैसी कोई व्यवस्था नहीं हैI हिंदी में कैपिटल और स्माल लैटर का भी झंझट नहीं हैI उच्चारण और एक्सेंट की समस्या नहीं हैI 

        बीसवीं शती के अंतिम दो दशकों में हिंदी का अंतर्राष्ट्रीय विकास बहुत तेजी से हुआ हैI वेब, विज्ञापन, संगीत, सिनेमा और बाजार के क्षेत्र में हिंदी की मांग जिस तेजी से बढ़ी है वैसी किसी और भाषा में नहीं हुआ हैI आज हिन्दी विश्व के सभी महाद्वीपों एवं उनमें स्थित लगभग 140 देशों में बोली जाती हैI विश्व के लगभग 150 विश्वविद्यालयों तथा सैकड़ों छोटे-बड़े क़ेंद्रों में विश्वविद्यालय स्तर से लेकर शोध स्तर तक हिंदी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था हुई हैI  विदेशों से 25 से अधिक पत्र-पत्रिकाएँ लगभग नियमित रूप से हिंदी में प्रकाशित हो रही हैंI  यूएई क़े 'हम एफ एम' सहित अनेक देश हिंदी कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं,  जिनमें बीबीसी, जर्मनी के डॉयचे वेले, जापान के एनएचके वर्ल्ड और चीन के चाइना रेडियो इंटरनेशनल की हिंदी सेवा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैI आज वह विश्व के आकाश में चन्द्रिका की तरह छिटक रही हैI तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था, मीडिया के वर्चस्व,  वैश्वीकरण एवं उदारीकरण ने हिंदी के विकास में अहम भूमिका निभायी है। उदारीकरण ने हिंदी को बाजार की भाषा बनाया, क्योंकि विश्व के पूंजीवादी देशों की व्यावसायिक दृष्टि भारत को एक बड़े बाजार के रूप में देखती हैI प्रयोगकर्ताओं की संख्या के आधार पर 1952 में हिंदी विश्व में पाँचवे स्थान पर थीI 1980 के आसपास वह चीनी और अंग्रेजी क़े बाद तीसरे स्थान पर आईI 1991 की जनगणना में हिंदी को मातृभाषा घोषित करने वालों की संख्या के आधार पर पाया गया कि यह पूरे विश्व में अंग्रेजी भाषियों की संख्या से अधिक है। सन् 1998 में यूनेस्को प्रश्नावली को दिए गए जवाब में भारत सरकार के केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के तत्कालीन निदेशक प्रोफेसर महावीर सरन जैन ने संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषाएँ एवं हिन्दी शीर्षक जो विस्तृत आलेख भेजा उसके बाद विश्व स्तर पर यह स्वीकृत हो चुका है कि वाचकों की संख्या के आधार पर चीनी भाषा के बाद हिन्दी का विश्व में दूसरा स्थान है। सन 1999  में मशीन ट्रांसलेशन समिट'  अर्थात् यांत्रिक अनुवादनामक संगोष्ठी में टोकियो  विश्वविद्यालय के प्रो. होजुमि तनाका ने भाषाई आँकड़े पेश करके सिद्ध किया कि विश्व में चीनी भाषा बोलने वालों का स्थान प्रथम और हिंदी का द्वितीय है और अंग्रेजी तीसरे क्रमांक पर पहुँच गई है, किन्तु यहाँ  यह जान लेना भी आवश्यक है कि चीनी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा काफी सीमित है।

  डॉ0 जयन्ती प्रसाद नौटियाल ने अपने भाषा शोध अध्ययन 2005 में हिन्दी वाचकों की संख्या एक अरब दो करोड़ पच्चीस लाख दस हजार तीन सौ बावन घोषित की है जबकि चीनी बोलने वालों की संख्या मात्र नब्बे करोड़ चार लाख छह हजार छह सौ चौदह बताया है। किन्तु आँकड़ों के खेल यदि मान लिया जाए कि रहस्यमय होते हैं तो भी उन्हें बिलकुल ही दरकिनार तो नहीं किया जा सकता। हम इस सच्चाई से तो मुख नहीं मोड़ सकते कि हिंदी भाषियों की संख्या विश्व की दो सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। उपर्युक्त विचारों और अनुसंधानों के निष्कर्ष यदि हमें आत्माश्लाघा में न डालें तो भले ही अंग्रेजी का नंबर वाचकों की संख्या की दृष्टि से तीसरा भासित होता है पर उसका क्षेत्र इतना व्यापक है कि हिन्दी और चीनी भाषाओं को उतना प्रसार बनाने में बड़ा भागीरथ यत्न करना होगा। 
                              पता- ई एस-1 436, सीतापुर रोड योजना कालोनी                                                अलीगंज सेक्टर-ए, लखनऊ 

केदार के मुहल्ले में स्थित केदारसभगार में केदार सम्मान

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